SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 218
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १३६ सप्ततिकाप्रकरण किस बन्धस्थान में कितने भग होते हैं पर वे किस प्रकार होते हैं इस वातका ज्ञान उतने मात्रसे नहीं होता, अतः आगे इसी वातका विस्तारसे विचार करते हैं तेईम प्रकृतिक वन्धस्थानमें चार भंग होते है, क्योकि तेईस प्रकृतिक वन्धस्थान अपर्याप्त एकेन्द्रियके योग्य प्रकृतियोको बाँधनेवाले जीवके हो होता है अन्यके नहीं और इसके पहले चार भंग वतला आये हैं, अतः तेईस प्रकृतिक वन्धस्थानमें वे ही चार भंग जानना चाहिये । पच्चीस प्रकृतिक वन्धस्थानमे कुल पच्चीस भंग होते है, क्योकि एकेन्द्रियके योग्य पच्चीस प्रकृतियोका बन्ध करनेवाले जीवके वीस भग होते है। तथा अपर्याप्त दोइन्द्रिय, तेइन्द्रिय, चौइन्द्रिय, तिर्यंच पंचेन्द्रिय और मनुष्यगतिके योग्य पच्चीस प्रकृतियोका वध करनेवाले जीवके एक एक भंग होता है। इस प्रकार पूर्वोक्त वीस भंगोमे इन पॉच भगोके मिलाने पर पच्चोस प्रकृतिक वन्धस्थानके कुल पच्चीस भङ्ग होते है। छब्बीस प्रकृतिक वन्धस्थानमें कुल सोलह भङ्ग होते हैं, क्योकि यह एकेन्द्रियके योग्य प्रकृतियोका बन्ध करनेवाले जीवके ही होता है और एकेन्द्रिय प्रायोग्य छब्बीस प्रकृतिक बन्धस्थानमे पहले मोलह भङ्ग बतला आये हैं, अत. छब्बीस प्रकृतिक बन्धस्थानमे वे ही सोलह भङ्ग जानना चाहिये। अट्ठाईस प्रकृतिक वन्धस्थानमे कुल नौ भन होते है, क्योकि देवगति के योग्य प्रकृतियोका बन्ध करनेवाले जीव के २८ प्रकृतिक वन्धस्थानके आठ भङ्ग होते हैं और नरक गतिके योग्य प्रकृतियोका बन्ध करनेवाले जीवके २८ प्रकृतिक वन्धस्थानका एक भङ्ग
SR No.010639
Book TitleSaptatikaprakaran
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages487
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy