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________________ वन्धस्थानत्रिकके संवेधभंग ११३ . सम्यग्वष्टियोके २८, २४, २३ और २२ ये चार सत्त्वस्थान ही पाये जाते है, अतः यहाँ भी उक्त चार सत्त्वस्थान होते हैं। , सम्यग्मिथ्याष्टिके १७ प्रकृतिक एक वन्धस्थान, ७ प्रकृतिक, ८ प्रकृतिक और ९ प्रकृतिक ये तीन उदयस्थान और २८, २७ तथा २४ प्रकृतिक तीन सत्त्वस्थान होते हैं । अविरतसम्यग्दृष्टियोमें उपशमसम्यग्दृष्टिके १७ प्रकृतिक एक वन्धस्थान, ६,७ और ८ प्रकृतिक तीन उदयस्थान तथा २८ और २४ प्रकृतिक दो सत्त्वस्थान होते है। क्षायिक सम्यग्दृष्टिके १७ प्रकृतिक एक वन्धस्थान, ६,७ और ८ प्रकृतिक तीन उदयस्थान तथा २१ प्रकृतिक एक सत्त्वस्थान होता है । वेदक सम्यग्दृष्टिके १७ प्रकृतिक एक बन्धस्थान, ७, ८ और ९ प्रकृतिक तीन उदयस्थान तथा २८, २४, २३ और २२ प्रकृतिक चार सत्त्वस्थान होते है ऐसा जानना चाहिये । इनके परस्पर संवेधका कथन पहले ही किया है, अतः यहाँ किसके कितने वन्धादि स्थान होते हैं इसका निर्देशमात्र किया है। तेरह और नौ प्रकृतिक बन्धस्थानके रहते हुए प्रत्येक्रमें २८, २४, २३, २२ और २१ ये पाँच मत्त्वस्थान होते हैं । १३ प्रकृतियो का वन्ध देशविरतोंके होता है। देशविरत दो प्रकारके हैं नियंच और मनुष्य । इनमे से जो तियेच देशविरत है उनके चारो ही उदयस्थानोमे २८ और २४ ये दो सत्त्वस्थान होते हैं। सो २८ प्रकृतिक सत्त्वस्थान तो उपशम सम्यग्दृष्टि और वेदक सम्यग्दृष्टि इन दोनो प्रकारके तिथंच देशविरतोके होता है। उसमें भी जो प्रथमोपशम सम्यक्त्वको उत्पन्न करनेके समय ही देशविरतको प्राप्त कर लेता है, उसी देशविरतके उपशमसम्यक्त्वके रहते हुए २८ प्रकृतिक सत्त्वस्थान होता है, क्योकि अन्तकरणके काल में विद्यमान कोई भी औपशमिक सम्यग्दृष्टि जीव देशविरतिको मात
SR No.010639
Book TitleSaptatikaprakaran
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages487
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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