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________________ बन्धस्थानोमे उदयस्थान सिद्ध है कि अनन्तानुबन्धीके उदयके विना सास्वादन सम्यक्त्व की प्राप्ति नहीं होती । सत्रह प्रकृतिक बन्धस्थानके रहते हुए छह प्रकृतिक, सात प्रकृति, आठप्रकृतिक और नौ प्रकृतिक ये चार उदयस्थान होते हैं । सत्रह प्रकृतिक वन्धस्थान तीसरे और चौथे गुणस्थानमें होता है । उनमेसे मिश्र गुणस्थानमे सत्रह प्रकृतियोका बन्ध होते हुए सात प्रकृतिक, आठ प्रकृतिक और नौ प्रकृतिक ये तीन उदयस्थान होते हैं । पहले सास्वादन गुणस्थानमें जो सात प्रकृतिक उदयस्थान वतला आये हैं उसमें से अनन्तानुवन्धीके एक भेदको घटाकर मिश्रमोहनीयके मिला देनेपर मिश्र गुणस्थान में सात प्रकृतिक उदयस्थान प्राप्त होता है क्यो कि मिश्र गुणस्थानमें अनंतानुबन्धीका उदय न होकर मिश्र मोहनीयका उदय होता है, अत यहाँ अनन्तानुवन्धीका एक भेट घटाया गया है और मिश्रमोहनीय प्रकृति मिलाई गई है । यहाँ भी पहले के समान भगोकी एक चौवीसी प्राप्त होती है । इस सात प्रकृतिक उदयस्थानमें भय या जुगुप्साके 'वेदकसम्यग्दृष्टि जीव श्रनन्तानुबन्धी चतुष्ककी विसंयोजना किये बिना कषायोंको नहीं उपशमाता है ।' यह केवल कषायप्राभृतके चूर्णिकारका ही मत नहीं है, किन्तु मूल कपायप्रामृत से भी इस मतकी पुष्टि होती है । कषायप्राभृतके प्रकृतिस्थान संक्रम अनुयोगद्वार में जो ३२ गाथाएँ आई हैं उनमें से सातची गाथामें बतलाया है कि '१३, ९, ७, १७, ५ और २१ इन छह पतद्ग्रहस्थानोंमें २१ प्रकृतियों का सक्रमण होता है।' यहाँ जो इक्कीस प्रकृतिक पतद्ग्रहस्थान में इक्कीस प्रकृतियोंका सक्रमण वतलाया है । इससे स्पष्ट हो जाता है कि कषायप्राभृतकी चूगिमें जो यह मत बतलाया है कि जिसने श्रनन्तानुवन्धी चतुष्ककी विसंयोजना की है ऐसा जीव भी सास्वादन गुणस्थानको प्राप्त हो सकता है सो यह मत कषायप्रामृत मूलसे समर्थित है । واب
SR No.010639
Book TitleSaptatikaprakaran
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages487
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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