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________________ आयुकर्मके संवैध भंग होते हैं उस प्रकार देव और नारकी जीव मरकर केवल तिर्यच और मनुष्यगतिमें ही उत्पन्न होते है शेप मे नहीं। नरकगतिमे आयुकर्मको उक्त विशेषताओका कोष्ठक [१०] क्रम न० काल कमन काल वन्ध उदय सत्त्व गुणस्थान अवन्धकाल . । न० । न० १, २, ३, ४ बन्धकाल ति. न० न० ति. बन्धकाल म० । न० न० म० ४ उप० बन्धकाल . न० न० ति०] १, २, ३, ४ ५ उप० वन्धकाल . न० न०म० १, २, ३, ४ अवन्ध, वन्ध और उपरतबन्धकी अपेक्षा नरकगति में जिस प्रकार पांच भग बतलाये हैं उसी प्रकार देवगतिमें भी जानना । चाहिये । किन्तु नरकायुके स्थानमे सर्वत्र देवायु कहना चाहिये। यथा-देवायुका उदय देवायुका सत्त्व इत्यादि ।
SR No.010639
Book TitleSaptatikaprakaran
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages487
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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