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________________ मुनिवर श्रीचतुरविजयजी-मरण सुमनांजलि बीजो पोतीनी जन्मभूमि छाणी (वडोदरा पासे) मां-एम वे म्होटा नवा ग्रन्थमंडारो स्थापित कर्या हता. तेओ पोते पण एक सरस लिपिकार हता, अने लेखनकला तथा लेखनसामग्रीना विशिष्ट मर्मज्ञ हता. लहियाओनी लखेली प्रतियोने पोते मूळभूत आदर्श प्रति साथे मेळवी जता अने तेमां थएली अशुद्धियोनुं संशोधन विगेरे करी नवीन प्रतिने शुद्ध करवा यथेष्ट परिश्रम सेवता. आजे विद्यमान सेंकडो जैन साधुओमां, एवो एक पण साधु नहिं होय के जे तेमना जेवो जूनी प्रतियोना संशोधन कार्यमा कुशळ होय, अथवा ते माटे परिश्रम उठाववा य तैयार होय. हुँ जे समयमां तेमना अन्तेवासमां आवीने रह्यो ते समये (सुरतमां) पण तेमर्नु आवं प्रतिसंशोधन विगेरेनुं कार्य सतत चालू ज हतुं; परंतु ते पछी थोडा ज मासमां तेमनु लक्ष्य प्रन्थोद्धारनी दृष्टिये एक वधु उपयोगी अने वधारे महत्त्वना कार्य तरफ वन्यु. ए कार्य ते श्री जैन आत्मानन्द प्रन्थरत्नमाला' नामे संस्कृत प्राकृत ग्रन्थोना मुद्रणकामनो विशिष्ट प्रारंभ. . वर्तमान जैन मुनिमंडलमां, जैन ग्रन्थोने छपाचीने प्रकट करवानी प्रवृत्तिना सौथी मुख्य अने म्होटा चालक तथा प्रचारक एवा आचार्यवर्य श्री सागरानन्द सूरि गणाय. तेमणे पोताना जीवनना छेल्ला ४०-४५ वर्षों दरम्यान एकला हाथे जेटला जैन ग्रन्थोने छपावीने प्रकाशमां मूक्या छे तेटला ग्रन्थो, एक पू० मुनिवर चतुरविजयजीने बाद करीने कहेवामां आवे तो, वाकीना वधा साधुओ मळीने पण प्रकट करवा समर्थ थया नथी. ए श्री सागरानन्द सूरि पण ते समय दरम्यान सुरतमा रहेला हता. तेमणे 'देवचन्द्र लालभाई जैन पुस्तकोद्धार फंड'नी स्थापना करावीने तेनी द्वारा, पोताना संचालन अने संपादन नीचे जैन ग्रन्थोनुं व्यवस्थित रीते मुद्रणकार्य प्रारंभ्यु हतुं. घणु करीने एनो सौथी पहेलो ग्रन्थ हेमचन्द्राचार्यविरचित 'वीतरागस्तोत्र' सटीक प्रकट थयो. मुंबईना निर्णयसागर प्रेसना सुन्दर टाईप अने सुघड छापवाळा, सुपर रॉयल १२ पेसी साइझना, प्रताकार स्वरूपमां, जैन ग्रन्थोने प्रकट करवानी प्रथाना मुख्य प्रवर्तक श्री सागरानन्दसूरि कही शकाय. सर्वसाधारण वाचकोनी दृष्टिये जैन ग्रन्थोनो ए आकार-प्रकार तद्दन प्रतिकूल तेम ज जाहेर पुस्तकालयोमा साचवणीनी दृष्टिये पुस्तकोने खास नुकसानकारक होवा छतां, जैन साधुओने पोताना वाचननी दृष्टिये विशेष अनुकूल लागवाथी ए प्रताकारनी प्रकाशनप्रथा तेमने बहु ज प्रिय थई पडी छे. सागरानन्द सूरिनी ग्रन्थप्रकाशनपद्धति जैन साधुओमां एक आदर्शभूत पद्धति स्थिर थई गई छे अने एना अनुकरणरूपे आज सुधीमां अनेक साधुओ द्वारा एवा सेंकडो ग्रन्थ छपाईने प्रकट थई चुक्याछे. आरीते सागरानन्द सूरिये प्रारंभेली ग्रन्थ प्रकाशननी प्रवृत्तिनु, सौथी प्रथम सुन्दर अनुकरण करवानो विशिष्ट प्रयत्न मुनिवर श्री चतुरविजयजीये प्रारंभ्यो हतो. आ प्रयत्न ते ज' भावनगरनी जैन आत्मानन्द सभा द्वारा प्रकट थती उक्त श्री 'आत्मानन्द जैनग्रन्थ रनमाला'नो आद्य आरंभ. _ 'समवसरणस्तव' नामना एक नानकडा प्रकरण ग्रन्थना मुद्रणथी ए माळानुं मंगल गुम्फन आरंभायु. सुरतना ज एक साधारण छापखानामां प्राथमिक नमूनारूपे एनुं मुद्रण करावामां आव्यु. 'प्रेस कॉपी'ना आलेखनथी मांडी अफकरेक्शन' आदिनी मुद्रणकामनी बधी प्रक्रिया जे तेमना माटे ते समये प्रायः नवी अने अपरिचित जेवी हती, ते तेमणे तरत ज जाणी लीधी. म्हने बरावर स्मरण डे के मांडमांड एक फार्म जेटला स्वल्प ग्रन्थपरिमाणवाळा ए प्रकरणना, प्रारंभना मात्र ४ पृष्ठ व्यारे प्रेसमांथी कंपोज थईने, प्रथम वारना गेली [फोना रूपमा, तेमना हाथमां आव्या, यारे तेओ अयत प्रमुदित थई गया हता अने ते पुफोना 'करेक्शन' करवामां सहायरूप थवा मादे मूळ कॉपी लईने
SR No.010638
Book TitleDharmabhyudaya Mahakavya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChaturvijay, Punyavijay
PublisherBharatiya Vidya Bhavan
Publication Year1949
Total Pages284
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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