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________________ ८-१-६० ___ रात मे कृष्णनगर मे ठहरे थे। कानपुर यहा से तीन-चार मील ही पडता है । अत काफी परिचित लोग इकट्ठे हो गये। रात्री मे प्रवचन नहीं हो सका था। अतः प्रात काल जब लोगो को पता चला तो सब मिलकर आये और प्रवचन का आग्रह करने लगे । इसीलिए प्रात.काल सूर्योदय के समय छोटा-सा प्रवचन हुआ। फिर कानपुर की ओर विहार हो गया। कानपुर तो पिछले साल प्राचार्यश्री का चातुर्मास ही था। अतः जुलूस में काफी लोग हो गये । यहा क्षत्रिय-धर्मशाला में ठहरे थे। परिचितो ने स्वागत का कार्यक्रम भी रख दिया। सर पद्मपतजी सिंहानिया ने अभिनन्दन पत्र पढा । वशीधरजी कसेरा, डा० आर० के० माथुर, धर्मराज दीक्षित, परिपूर्णानन्द वर्मा, डा० जवाहरलाल तथा गिल्लूमल जी बजाज आदि ने आचार्यश्री के अभिनन्दन मे अपने-अपने हृदयोद्गार प्रकट किए। डा० जवाहरलाल भूतपूर्वमत्री (उत्तरप्रदेश) ने आचार्यश्री के चरणो की ओर देखा और कहने लगे---आचार्यजी! आप नगे पैर कैसे चलते हैं ?" आपके सुकुमार चरणो मे रक्त चमकने लगा है। सचमुच आपकी तपस्या बडी विकट है। हम लोगो की निःस्वार्थ सेवा कर आप पुण्य-लाभ कर रहे है। __ परिपूर्णानन्दजी बड़े अच्छे वक्ता हैं । खडे हो जाते है तो बोलते ही जाते है। किसी को अप्रिय भी नही लगते । उनका अध्ययन भी अच्छा है । कल्प-सूत्र मे से उन्होने कई उदाहरण प्रस्तुत प्रसग पर दिये।
SR No.010636
Book TitleJan Jan ke Bich Acharya Shri Tulsi Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHansraj Baccharaj Nahta
PublisherMeghraj Sanchiyalal Nahta
Publication Year
Total Pages233
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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