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________________ ६-१-६० अभी तक आचार्यश्री का स्वास्थ्य पूर्ण रूप से स्वस्थ नहीं हुआ है। फिर भी विहार तो लम्बे-लम्बे ही करने पडते है । इससे कुछ-कुछ थकावट भी आ जाती है । आहार-व्यवस्था मे आचार्य श्री ने बहुत कुछ परिवर्तन कर लिया है । परिणाम स्वरूप दो-चार द्रव्य ही दिन भर मे खाते हैं । आज सायकालीन प्रतिक्रमण के पश्चात् कहने लगे-बीमारी के भी तीन गुण हैं । पहला कभी-कभी बीमार हो जाने से मनुष्य का अह दवता रहता है । उसे यह समझने का अवसर मिलता रहता है कि मैं ही सब कुछ नही हू । कुछ अज्ञात शक्तियां भी है जो मनुष्य को परास्त कर सकती हैं । अत मुझे सभल-सभल कर चलना चाहिए । दूसरा-बीमारी के समय बहुत थोडे द्रव्यो के खाने से ही काम चल जाता है। तीसराहमेशा ही हमेशा खाते रहने से मनुष्य के कल पुर्ने कुछ शिथित पड जाते हैं । बीमारी मे अल्प भोजन करने से उन्हे विश्रान्ति मिल जाती है और वे एक बार फिर कार्यक्षमता प्राप्त कर लेते हैं। इतने मे एक वृद्ध किसान कधे पर एक गठरी रखे वहाँ आ पहुचा । अपने जीवन मे वह सभवत ७०-७५ वसन्त देख चुका था। अतः उसकी भाखो की रोशनी काफी क्षीण पड चुकी थी । कमर भी झुक चली थी। हाथ मे एक लाठी थी। उसे टिकाते-टिकाते वह धीरे-धीरे चल रहा था। आते ही उसने बडे भक्ति-भाव से नमस्कार किया और नीचे बैठ गया। बैठकर गठरी खोलने लगा । हम सव बडे कुतूहल से उसकी ओर देख रहे थे । हाथ कमजोर हो चले थे। अतः गठरी खोलने में काफी समय लग
SR No.010636
Book TitleJan Jan ke Bich Acharya Shri Tulsi Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHansraj Baccharaj Nahta
PublisherMeghraj Sanchiyalal Nahta
Publication Year
Total Pages233
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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