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________________ हमारी इच्छा भी हो गई। पर आचार्यश्री से आज्ञा लेने गये तो निषेध कर दिया। कहने लगे--अभी आगे चलना है। रस लेने से देरी हो जाएगी। रस मीठा है या मजिल | मानना पड़ा कि मजिल ही मीठी है । प्रत. विना रस पीये ही आगे चल पडे । ___ चूकि देर काफी हो चुकी थी। कुछ साधु धीरे-धीरे चल रहे थे। अत प्राचार्यश्री वही ठहर गये। कहने लगे-जल्दी करो। सव आगे निकल जाओ। मैं सबसे पीछे रहूँगा । ताकि सभी समय पर पहुच जाए। हम लोग तथा साध्वियां भी आगे निकल गई। सवसे पीछे आचार्यश्री थे। हमे अपनी गति मे वेग लाना आवश्यक हो गया। अगर पीछे रह जाते तो आचार्यश्री हँसे विना नहीं रहते। अत सव जल्दी-जल्दी चलने लगे। आचार्यश्री को भी जब हम सब आगे निकल जाते है तो बडी निश्चिन्तता रहती है। कुछ साधु तो प्रतिस्पर्धा मे आकर इतने तेज चलने लगे कि दस-ग्यारह मिनट मे ही एक मील पार हो गये । हमारी गति की भी अपनी एक व्यवस्था है। हम दौड तो सकते नही । बीचबीच मे पानी को बचाना पडता था, हरियाली को बचाना पड़ता था और सबसे ज्यादा तो बचाना पडता था अवाध गति से चलने वाले यातायात को। अत इन सब वाघाओ के होते हुए भी करीव एक घण्टे मे अगली मजिल पहुच गये और आचार्यश्री के पहुचने तक अपना-अपना अध्ययन करते रहे। आचार्यश्री ने आते ही भिक्षा के लिए जाने का आदेश दे दिया। सव साधु भिक्षा के लिये जाने लगे। आचार्यश्री आज वाहर बरामदे में ही वैठे थे। अत. हम सबको आते-जाते देख रहे थे। मैं पानी लेकर आया तो कहने लगे-तुम लोग विना पछेवडी (उत्तरीय) के गाठ दिये कैसे चलते हो? यो ढीले-ढाले बदन से तुमसे कैसे चला जाता है ? मैंने कहा- मेरी पछेवडी मोटे कपडे की है तथा कुछ मोटी भी है
SR No.010636
Book TitleJan Jan ke Bich Acharya Shri Tulsi Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHansraj Baccharaj Nahta
PublisherMeghraj Sanchiyalal Nahta
Publication Year
Total Pages233
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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