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________________ रात्री में स्वागत का एक छोटा-सा कार्यक्रम रखा गया था । यहा: पर भी परिचित लोगो का काफी आवागमन रहा । नगरपालिका के अध्यक्ष श्री विश्वभरनाथ पाण्डेय ने स्वागताध्यक्ष के पद से बोलते हुए कहा- ई० सन् की पहली शताब्दी और उसके बाद के हजारो वर्षों तक जैनधर्म मध्यपूर्व के देशो मे किसी-न-किसी रूप मे यहूदी धर्म, ईसाई धर्म और इस्लाम को प्रभावित करता रहा है । प्रसिद्ध जर्मन इतिहास लेखक 'वानक्रेमर' के अनुसार मध्यपूर्व मे प्रचलित 'समानिया' सम्प्रदाय श्रमण शब्द का अपभ्रश है । इतिहास लेखक जी० एफ० मूर लिखता है-हजरत ईसा के जन्म की शताब्दी से पूर्व ईराक, श्याम और फिलस्तीन मे जैन मुनि और वौद्ध भिक्ष सैकडो की संख्या में चारो ओर फैले हुए थे। "सिहायत नाम एनासिर' का लेखक लिखता है कि इस्लाम धर्म के कलन्दरी तवके पर जैन धर्म का काफी प्रभाव पड़ा था। कलन्दर चार नियमो का पालन करते थे—साधुता, शुद्धता, सत्यता और दरिद्रता । वे अहिंसा पर अखण्ड विश्वास रखते थे। एक बार का किस्सा है। दो कलन्दर मुनि वगदाद मे आकर ठहरे । गृह स्वामी की अनुपस्थिति मे मुनियो के सामने शतुरमुर्ग उसका हीरो का बहुमूल्य हार निगल गया। जव गृह स्वामी आया तो उसे हार नहीं मिला । स्वभावत ही उसे मुनियो पर अविश्वास हो गया। उसने मुनियो को बहुत कुछ पूछा पर मुनि कुछ नहीं बोले । किन्तु वे जानते थे कि यदि हम सही घटना बता देंगे तो गृह स्वामी इसी समय शतुरमुर्ग को मार डालेगा। जिसका पाप हमे लगेगा। अत वे कुछ भी न बोले । उन्हे मौन देखकर गृह स्वामी का सन्देह और भी पुष्ट हो गया। समझाने-बुझाने से काम चलता नहीं देखकर उसने मुनियो को पीटा भी। पर फिर भी मुनि कुछ नही वोले । अन्त मे क्रुद्ध होकर उसने मुनियो को जान से मार डाला। इधर कुछ ही देर बाद मे शतुरमुर्ग ने विष्टा किया जिसमे हार अपने आप निकल आया । गृह स्वामी ने उसे देखा तो अवाक् रह गया। उसे
SR No.010636
Book TitleJan Jan ke Bich Acharya Shri Tulsi Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHansraj Baccharaj Nahta
PublisherMeghraj Sanchiyalal Nahta
Publication Year
Total Pages233
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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