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________________ मैंने उसे समझाया-भैया ! पहले हम दिल्ली जाएगे और फिर राजस्थान जाएगे। व्यक्ति–तो क्या आप राजस्थान तक पैदल ही जाएगे? मैं-हा, हम हमेशा जीवन भर पैदल ही चलते है । व्यक्ति-राजस्थान क्यो जाते है ? क्या वहा आपका घर है ? मैं-नही हमारा घर कही होता ही नही । हम तो जीवन भर घूमते ही रहते है । सारा संसार ही हमारा घर है । वह तो विचारा विस्मय-भरी दृष्टि से देखता ही रह गया। इतना ही नहीं अपितु सडक पर प्रतिदिन कडा परिश्रम करने वाले मजदूर भी यह सुनकर कि हम जीवन भर पैदल चलते हैं, हैरान रह जाते है । सहसा उन्हे विश्वास ही नहीं होता । वे समझते है महात्माजी हमारे साथ मजाक कर रहे हैं? आज भी एक जगह कुछ मजदूर पूछने लगे महात्माजी आप किघर जा रहे है। हम-जिधर चले जाए। मजदूर यह क्या ? जिधर चले जाए, इसका क्या मतलव है ? हम-इसलिए कि हमारा कही घर नही होता। हम जिघर चले जाए चले जा सकते है। एक दो दिन पहले हम चल रहे थे कि अचानक एक ट्रक पाकर हमारे सामने रुक गया। ड्राइवर नीचे उतरा और कहने लगा-स्वामीजी ! पैदल क्यो चलते है ? हमारे ट्रक में बैठ जाइए। हम आपको अगले गांव पहुचा देंगे। ___ प्राचार्य श्री ने हसते हुए कहा--भया । आज तो तुम हमे पहुचा दोगे पर कल हमे कौन आगे ले जाएगा? हमारा तो जीवन भर चलना जो ठहरा । हम पैदल चलते है और इसलिए तुम्हारे ट्रक मे नही बैठेंगे।
SR No.010636
Book TitleJan Jan ke Bich Acharya Shri Tulsi Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHansraj Baccharaj Nahta
PublisherMeghraj Sanchiyalal Nahta
Publication Year
Total Pages233
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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