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________________ २१५ मौलिक दृष्टान्तो के कला पूर्ण चित्र, उनके जीवन व विचार-दर्शन से सम्बद्ध आलेख पत्र छत्री के चारो ओर दिवारो पर लगाए गए थे। आचार्यश्री द्वारा प्रशात एव गभीर स्वर मे समुच्चारित पागम वाणी से लगभग दस हजार जनता की उपस्थिति मे कार्यक्रम प्रारभ हुना। आचार्यश्री ने इस अवसर पर अपना प्रेरक सदेश देते हुए कहाआज हमे सात्विक गर्व और प्रसन्नता है कि दो सौ वर्ष पूर्व का ऐतिहासिक अभि निष्क्रमण समारोह मनाने के लिए हम उपस्थित है । अभिनिष्क्रमण का अर्थ है-निकलनी। किसी लक्ष्य के समीप जाना, प्रवजित होना । इतिहास बताता है कि गौतम बुद्ध का अभिनिष्क्रमण हुआ था। घर से निकल कर वे ६ वर्षों तक अन्य साधको के साथ रहे । फिर दूसरी बार अभिनिष्क्रमण कर उन्होने वोधि प्राप्त की। आचार्य भिक्षु ने भी दो वार अभिनिष्क्रमण किया। ८ वर्षों तक वे स्थानकवासी सम्प्रदाय में रहे । यह उनके पहले अभिनिष्क्रमण का परिणाम था । तदनन्तर बोधि प्राप्त कर उन्होने दूसरी वार इसी चैत्र शुक्ला नवमी को फिर अभिनिष्क्रमण किया । उसके दो कारण थे-आचार-विचार का मतभेद । आचार-विचार के शैथिल्य से उनका मानस उद्वेलित हुआ। उन्होने अपने विचार गुरू के सामने रखे। दो वर्षों तक विचार विनिमय चला। पर जब अत तक भी कोई सामजस्य नही वैठ सका तो उन्हे अभिनिष्क्रमण करना पड़ा। अभिनिष्क्रमण मतभेद को लेकर हुआ था, मन भेद को लेकर नहीं । उनके अनुयायी भी - यह स्वीकार करते है कि गुरू शिष्य मे परस्पर वडा प्रेम था। यह भी माना जाता है कि प्राचार्यश्री रुधनाथजी के उत्तराधिकारी के रूप मे आचार्य भिक्षु का ही नाम लिया जाता था। चैत्र शुक्ला नवमी को अभिनिष्क्रमण हुा । विलग होने पर आचार्य भिक्षु को रहने के लिए न स्थान मिला और न चलने के लिए मार्ग हो । इसका कारण यह था कि शहर मे घोपणा हो चुकी थी कि कोई उन्हे रहने के लिए स्थान न दे । वह घोपणा सभव है इसलिए की गई हो कि
SR No.010636
Book TitleJan Jan ke Bich Acharya Shri Tulsi Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHansraj Baccharaj Nahta
PublisherMeghraj Sanchiyalal Nahta
Publication Year
Total Pages233
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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