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________________ चाहता कि इस सुलभता पर कुछ रोक लगाऊँ । जिसके स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव नहीं पडे वह यथेष्ट ईक्षु-रस ले सकता है और पी सकता है। हमारी परम्परा के अनुसार आचार्य की आज्ञा के विना कोई भी साधु कोई भी वस्तु ग्रहण नही कर सकता। विना आचार्य को दिखाए उसका उपयोग भी नही कर सकता। पर इस समय मैं सबको छूट देता हूँ। मार्ग मे चलते यदि शुद्ध ईक्षु-रस मिले तो कोई भी उसे ग्रहण कर सकता है । हाँ, जो ईक्षु-रस ग्रहण करे वह आकर मुझे ज्ञात अवश्य कर दे । मैं देखता हूँ कुछ साधु इस विधि मे असावधानी करते है। वह सघ की दृष्टि से उपयुक्त नही है । आना चाहे छोटी हो या बडी हमे उसका निष्ठा से पालन करना चाहिए। मैं आज सवको सावधान कर देता हूँ। यदि इसमे किसी ने प्रमाद किया तो ये प्राप्त सुविधाएँ अधिक दिनो तक नहीं चल सकेगी। ___ इसके साथ-साथ एक बात और भी है, जिस स्थान से एक बार रस ले लिया है वहां फिर दूसरी बार कोई साधु न जाए। सब साधु एक साथ तो चलते नहीं है । अत. पीछे आने वाले साधुओ को यह पूछ कर रस लेना चाहिए कि यहाँ से पहले कोई रस ले तो नहीं गए ? वारबार एक ही स्थान पर जाने से दाता के मन मे साधुओ के प्रति अश्रद्धा उत्पन्न हो सकती है। हम किसी पर भार वनना नही चाहते । कोई खुशी से हमे कुछ दे, वही हमे लेना चाहिए । यद्यपि आचार्यश्री और भी कुछ कहना चाहते थे पर उस समय प्रतिक्रमण मे विलम्ब हो रहा था। प्रत आचार्यश्री ने उन विषयो को किसी दूसरे दिन के लिए छोड दिया। चदोली से विहार कर हम मुगलसराय की ओर आ रहे थे । मार्ग मे राजस्थानी लोगो का एक काफिला मिला। उसमे बूढे, बच्चे, स्त्री-पुरुष सभी लोग थे। वे घोडो, गधो तथा ऊँटो पर अपना घर द्वार लादे डाल
SR No.010636
Book TitleJan Jan ke Bich Acharya Shri Tulsi Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHansraj Baccharaj Nahta
PublisherMeghraj Sanchiyalal Nahta
Publication Year
Total Pages233
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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