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________________ २५-१२-५६ आज पिछली रात्री मे आचार्यश्री ने सभी साधुओ को सम्बोधित करते हुए कहा-अभी हम लोग यात्रा मे चल रहे है। यात्रा भी ऐसे प्रदेश की जहाँ परिचितो का सर्वथा अभाव ही कहा जा सकता है । इस अवस्था मे अनेक प्रकार की असुविधाओ का होना अस्वाभाविक नही है । वैसे साधु-जीवन स्वय ही प्रसिधारा-व्रत है पर इस समय तो हमारी कठिनाइयाँ और भी बढ जाती हैं। हम जानते हैं कि हमे भोजन भिक्षा से ही मिलता है । यद्यपि अभी हमारे साथ चलने वाले यात्रियो की सख्या भी कम नहीं है, पर फिर भी हमे यह ख्याल रखना आवश्यक है कि हमारी ओर से उन्हें कोई विशेष कठिनाई न हो। आहार के सम्बन्ध मे स्पष्ट है कि गृहस्थ अपने भोजन मे से सकोच-ऊनोदरी करके हमे शुद्ध-अाहार देते हैं। उनकी भावना भी बडी प्रवल रहती है । हम यदि उनका सारा आहार ही ले लें तो उन्हे प्रसन्नता ही होगी। लेकिन हमारी अपनी एषणा की दृष्टि से हमे उनसे इतना आहार नहीं लेना चाहिए जिससे उन्हे बहुत ऊनोदरी करनी पडे। इसमे कोई हर्ज नहीं कि हमारे थोडी ऊनोदरी हो जाय । बल्कि मै तो यहाँ तक कहता हूँ कि साधुओ को कुछ ऊनोदरी तो करनी ही चाहिए । मैं स्वय आजकल थोडी ऊनोदरी करने का प्रयास किया करता हूँ। साधुओ को यह नही सोचना चाहिए कि मैं क्यो ऊनोदरी करूँ? मैं सोचता हूँ कि ऐसी परिस्थिति मे, जबकि हमारी एषणा के परीक्षण का अवसर प्राता है हमे खुशी से उसका स्वागत करना चाहिए। दूसरी बात है-इन दिनो हमे ईक्षु रस काफी सुलभ है । मैं नहीं
SR No.010636
Book TitleJan Jan ke Bich Acharya Shri Tulsi Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHansraj Baccharaj Nahta
PublisherMeghraj Sanchiyalal Nahta
Publication Year
Total Pages233
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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