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________________ ६७ दूसरी भुजा थी। तेरापथ जगत् इस महान व्यक्ति का सदा ऋणी रहेगा । वे अर्ध शताब्दी तक इस धर्म-सघ की रीति-नीति को अक्षुण्ण रखते हुए दूसरो मे गुरू के प्रति श्रद्धा और प्रामाणिक बने रहने की भावना भरते रहे है । बुद्धि का उत्कर्प, दीर्घ-दृष्टि और दृढ-सकल्प; ये उनके अनन्य गुण थे। जिनकी तुलना कर सकने मे दूसरे बहुत अशों तक असमर्थ रहेगे । वे श्रामण्य के मूर्तरूप थे। उनके निधन से निश्चय ही एक ऐसे महान् व्यक्ति का निधन हो गया है, जिसका सारा जीवन ही एक आदर्श को आराधना मे लगा था। सचमुच उनकी जीवनगाथाए तेरापथ के इतिहास के पृष्ठो मे स्वरिणम रेखाए होगी। प्राचार्यवर को वन्दन । आज गाव मे दिन भर आचार्यश्री के चारो ओर मेला-सा बना रहा। कई बार प्रवचन-सा हो गया। फिर भी कुछ लोग तो बिहारवेला तक आते ही रहे । दूर-दूर से आने वाले कुछ लोग तो आचार्यदर्शन से वचित ही रह गए । काफी लोगो ने दूर-दूर तक दौडकर प्राचार्यश्री के दर्शन किये । सचमुच आचार्यश्री जिस और जाते हैं जन-समुदाय उलट पडता है। यह सव साधना का ही तो परिणाम है। आचार्यश्री कोई ऐसे राज्याधिकारी तो है नही जो लोगो की भौतिक अभितृप्तियों के सहयोगी बन सके। अध्यात्म जैसा नीरस विषय भी उनके जीवनसम्पर्क से सचेतन और आकर्षक होकर लाखो-लाखो लोगो मे स्पन्दित हो रहा है। ऐसा लगता है जैसे विषय कोई नीरस नही होता। उसको प्रवाहित करने वाला व्यक्तित्व समर्थ होना चाहिये। प्रतिदिन पाद-विहार से पाहत होकर एक साघु मुनि महेशकुमारजी आज चलने में असमर्थ हो गए। उनके पैर सूज गए अत उनके साथ एक और साधु मुनिश्री सम्पतकुमारजी को छोडकर आचार्यश्री ने आगे की ओर प्रयाण कर दिया।
SR No.010636
Book TitleJan Jan ke Bich Acharya Shri Tulsi Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHansraj Baccharaj Nahta
PublisherMeghraj Sanchiyalal Nahta
Publication Year
Total Pages233
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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