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________________ आदि साधुओ ने मत्री मुनि की यशोगाथा गाते हुए अपने पर किये गए उपकारो का सविस्तार वर्णन किया । मुनिश्री नगराजजी ने उनकी अमेय-मेधा की सराहना करते हुए कहा-मुझे अपने जीवन मे अनेक न्यायविदो से मिलने का अवसर मिला है। पर मैंने मत्री मुनि मे जिस न्यायविशदता के दर्शन किये वह सचमुच विलक्षण थी। उनका यह गुण मेरे मन पर छाप छोड जाने वाले बहुत-थोडे से व्यक्तियो मे से उन्हे भी एक प्रमुख पद प्राप्त करवा देता है । सचमुच तेरापथ सघ के वे एक ऐसे छत्र थे जिसकी छाया में प्रत्येक सदस्य ने यथावश्यक विश्राम किया है । ___ आचार्य श्री ने उन्हे अपनी श्रद्धाजलि समर्पित करते हुए कहायद्यपि अन्तिम क्षणो मे मैं उनके पास नहीं रह सका। पर मुझे उनकी ओर से कोई अतृप्ति नहीं है। मुझे उनके लिए जो कुछ करना था वह जी भर कर किया तथा जो कुछ लेना था वह जी भर कर लिया। अब मुझे कोई प्रभाव नही खलता है । वे भी सभवत अपने आप मे पूर्णकाम थे । वैसे प्राचार्य-दर्शन की उत्कण्ठा तो सभी मे रहना स्वाभाविक ही है । पर ऐसी कोई कामना सभवत उनमे नही रही थी जिसे पूर्ण करने के लिए मुझे उनसे मिलना आवश्यक रहा हो। उन्होने इन वर्षों मे दारुणवेदना सही थी । पर मैं कह सकता हूं कि उनकी जैसी सेवा-व्यवस्था सर्व सुलभ नही है । वे एक सौभागी पुरुष थे। जिस सौभाग्य से उन्होने शासन से सम्बन्ध किया था उसी सौभाग्य से उन्होने मृत्यु का आलिंगन किया है । उन जैसी स्मृति तो बहुत ही कम लोगो को प्राप्त हुई थी। उन्होने शासन को श्रीवृद्धि के लिए जो अथक-प्रायास किए हैं वे युगयुग तक तेरापथ के इतिहास मे अमर रहेगे। अनेक लोग उनके स्फूर्तिशील जीवन से प्रेरणा लेकर अपने आपको कृतार्थ करेंगे। उनमे व्यक्तिगत इच्छा तो जैसे नहीं के बराबर थी। शासन से ऐसा तादात्म्य बहुत कम लोगो मे ही पाया जा सकता है। गुरु की दृष्टि के वे हमेशा सन्मुख रहे हैं । उन्हे कुछ कहना तो दूर रहा अगर यह आभास भी हो जाता
SR No.010636
Book TitleJan Jan ke Bich Acharya Shri Tulsi Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHansraj Baccharaj Nahta
PublisherMeghraj Sanchiyalal Nahta
Publication Year
Total Pages233
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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