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________________ १२ भाव से जो प्रतिष्ठा उन्होने अजित की थी वह बहुत ही कम लोगों को मिली थी। वे स्थानीय अणुव्रत-समिति के एक प्रमुख सदस्य थे। आज के आयोजन को सफल बनाने के लिए उन्होने अथक परिश्रम किया था। प्राज आचार्यश्री को अपने बीच पाकर वे फूले नहीं समा रहे थे। सभवतः इसी हर्षातिरेक से उनकी हृदयगति रुक गई थी। जीवन का यह क्षणभगुर पात्र कितना विचित्र है कि अतिरिक्त सुख और दुख न स्वय ही उसमे से बाहर छलक पडते है अपितु उसे भी विनष्ट कर देते है। ___ मध्याह्न मे मत्री मुनिश्री मगनलालजी के स्वर्गारोहण के उपलक्ष मे प्राचार्यश्री की अध्यक्षता मे स्मृति-सभा का समायोजन किया गया। तेरापथ के इतिहास की यह एक विरल घटना थी जो सभवत अपने ढग की प्रथम ही थी। किसी भी साधु के स्वर्गगमन को लेकर आचार्यश्री ने स्मृति-सभा की समायोजना की हो ऐसा अवसर अभी तक नहीं पाया था । पर मत्री मुनि की गुणाढ्यता ने प्राचार्यश्री के मन मे इतना स्थान प्राप्त कर लिया था कि उसका यह तो एक बहुत ही अल्प-प्राण परिचय था। आज के युग मे शोक-सभायो का प्रचलन साधारण हो गया है। पर प्राचार्यश्री मृत्यु को शोक के रूप मे नही देखना चाहते । वह तो जीवन की एक अनिवार्य शर्त है । जिसे हर किसी को पूरा करना ही पडता है । अत उसके लिए शोक क्यो किया जाय? मनुष्य अपने जीवन के साथ मृत्यु का सौदा करके आता है। सौदा समाप्त हो जाने के वाद सभी को यहा से जाना ही पड़ता है। फिर साधुनो के लिए तो शोक का कोई प्रश्न ही नहीं उठता। उनके लिए तो समाधि-मरण एक महोत्सव है। तब उसके लिए शोक कैसा? हा उनके गुणो की स्मृति अवश्य प्रेरक बन सकती है । इसीलिए आचार्यश्री शोक-सभा को स्मृति-सभा कहना अधिक उपयुक्त समझते है। मुनिश्री चम्पालालजी, मुनिश्री नथमलजी, मुनिश्री नगराजजी
SR No.010636
Book TitleJan Jan ke Bich Acharya Shri Tulsi Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHansraj Baccharaj Nahta
PublisherMeghraj Sanchiyalal Nahta
Publication Year
Total Pages233
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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