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________________ भी चिन्तवन करता है "कि, मैं बहुतसी स्त्रियों के साथ विवाह करूंगा, वे अपने रूपसे तीनों लोकोंको पराजित करेंगी, सौभाग्यसे कामदेवका भी साम्हना करेंगी, अपने नानाप्रकारके विलासोंसे (नखरोंसे) मुनियोंके चित्तोंको भी क्षुभित करेंगी, कलाओंसे वृहस्पतिकी भी हँसी करेंगी और विज्ञानसे अतिशय मानी पंडितोंके चित्त भी रंजायमान करेंगी। ऐसी रूपगुणसम्पन्न स्त्रियोंका मैं हृदयवल्लभ होऊंगा। वे मेरे सिवाय दूसरे पुरुषोंकी गन्ध भी सहन न करेंगी, मेरी आज्ञाका कभी उल्लंघन न करेंगी, मेरे चित्तको निरन्तर अतिशय आनन्दित किया करेंगी, वनावटी क्रोध दिखलाकर मैं रूठ जाऊंगा, तो वे मुझे मनाकर प्रसन्न करेंगी, कामक्रीडारूप कार्य सिद्ध करनेके लिये चूंसरूप सैकड़ों चाटुकार (खुशामदें) करेंगी, इशारोंसे मेरे हृदयके सद्भावोंको प्रगट किया करेंगी, नाना प्रकारके विनोक' हावोंसे मेरे हृदयको हरण करेंगी और निरन्तर परस्परकी ईर्षासे वे मेरे ऊपर कटाक्षोंके वाण छोड़कर इच्छापूर्वक मुझे घायल करेंगी। और मेरा इन्द्रके परिवारकी भी हँसी करनेवाला, विनयवान, चतुर, शुद्धचित्त, सुन्दर वेशवाला, अवसर देखकर कार्य करनेवाला, मनको रुचनेवाला, मुझपर प्यार करनेवाला, सारे उपाय करनेमें तत्पर, शूरवीर, उदार, सारी कलाओंका जाननेवाला, और सत्कार करनेमें कुशल, परिवार होगा। मेरे ऐसे बहुतसे महल होंगे, जो अपनी यशरूपी स्वच्छ कलईकी सफेदीके कारण अपने चित्तके समान शोभित होंगे, बहुत बड़ी ऊंचाईके कारण हिमालय पर्वतकी शंका उत्पन्न करेंगे, नाना प्रकारके विचित्र २ चित्रोंसे दर्शनीय होंगे, चंदोवोंसे शोभित होंगे, नेत्रोंको आनंदित करनेवाली १ स्त्रियां जिस भावसे स्नेहके वश पतिका अनादर करती हैं, उसे विश्वोक हाव कहते हैं। --
SR No.010630
Book TitleUpmiti Bhav Prapanch Katha Prastav 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherNathuram Premi
Publication Year1911
Total Pages215
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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