SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 24
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ स्तारका ) कुछ पता नहीं लगता है । उसके चारों ओर एक जलसे भरी हुई खाई है, जिससे वह दुर्गम्य है, अर्थात् वाहरका कोई पुरुष उसमें प्रवेश नहीं कर सकता है, और शोभनीय मनोहर तरंगोंवाले सरोवरोंके कारण वह आश्चर्यकारी बन रहा है। शत्रुओंको दुख देने वाले घोर अंधकूपोंसे जो कि कोटके पास २ चारों ओर बने हुए हैं, वह नगर छुप रहा है । देवोंके विहार करने योग्य बगीचोंसे जो कि नाना प्रकारके फल फूलोंसे लद रहे हैं और भ्रमण करतेहुए भौंरोंके तीव्र झंकाररूपी संगीतसे चित्तको चुरा रहे हैं, वह नगर मुंदर है । इस प्रकार अनेक आश्चयाँवाला और चमत्कारोंका कारण वह 'अदृष्टमूलपर्यंत' नानका महानगर है। उस नगरमें एक निप्पुण्यक नामका दरिद्री रहता है। उसका पेट बहुत बड़ा है । उसके भाई बन्धु सब मर गये हैं। वह दुर्वृद्धि है, धन तथा पुरुषार्थसे रहित है । भूख सहते सहते उसका शरीर बहुत दुबला हो गया है । भिक्षाके लिये एक घड़ेका फूट हुआ ठीकरा लेकर वह घर घर निन्दा सहता हुआ रात दिन फिरता है। वह अनाय है। धरतीमें सोनेसे उसकी पीठ तथा दोनों करवट छिल गये हैं। धूलसे उसका सारा शरीर मैला हो रहा है और फटे हुए चीथड़ोंसे ढंक रहा है। उसे दुर्दुमनीय (शैतान ) लड़कोंके झुंडके झुंड क्षण क्षणमें मारते हैं । लकड़ी मुक्कों तथा बड़े २ टेलोंकी मारसे वह जर्जरा-अघमरा हो रहा है। इस प्रकार सारे शरीरमें बड़ी २ चोटोंके लगनेसे उसका आत्मा अतिशय दुखी हो रहा है और "हा माता, मेरी रक्षा करो" इस प्रकार दीनतासे चिल्लाता हुआ वह पागल सा हो रहा है । इसके सिवाय वह उन्माद, ज्वर, कोद, खुजली तथा शूल वेदनासे भी दुखी है। सारांश यह कि वह सारे
SR No.010630
Book TitleUpmiti Bhav Prapanch Katha Prastav 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherNathuram Premi
Publication Year1911
Total Pages215
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy