SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 145
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ उपजते हैं, जिनमें कभी धनकी गन्धका भी सबन्ध नहीं हुआ है, जो सारे दुःखोंके भाजन हैं और जिनकी सत्र लोग निन्दा करते हैं। तथा एक माता पितासे एक साथ उत्पन्न हुए दो सहोदर भाईयोंमें यह विशेषता क्यों दिसलाई देती है कि, उनमेंसे एक तो रूपमें कामदेव सरीखा होता है, शान्तितामें मुनियों के समान होता है, बुद्धिवैभवमें अभयकुमारके तुल्य होता है, गंभीरतामें क्षीर समुद्रके जैसा होता है, स्थिरतामें नुमेरुके शिखरतुल्य होता है, शूरतामें अर्जुनके सदृश होता है, धनमें धनद अर्थात् कुबेरके समकक्ष होता है, दानमें राजा कर्णके समान होता है, निरोगतामें वनसरीखे शरीरवाला होता है, और सदा प्रसन्न रहने में बड़ी २ ऋद्धियोंके धारी देवोंके तुल्य होता है। इस तरह सारे गुणों और कलाओंसे शोभित होकर वह सब लोगोंके नेत्रों और नित्तोंको आनन्दित करता है। और दूसरा भाई अपनी घिनौनी सूरतसे संसारभरके वित्तको व्याकुल करता है, अपनी बुरी २ चेष्टाओसे अपने मातापिताको भी दुखी करता है, मूर्खशिरोमणिपनेसे पृथ्वीमरको जीतता है, तुच्छतामें-हलकेपनमें सेमर और आकके चुओंसे भी बढ़ जाता है, चपलतासे वन्दरोंकी लीलाकी भी हँसी करता है, डरपोकपनमें चूहोंको भी नीचा दिखलाता है, निर्धनतामें भिखारी जैसा रूप धारण करता है, कंजूसीमें ढक जातिके लोगोंसे भी आगे बढ़ जाता है, बड़े २ रोगोंसे घिरा होनेके कारण जब वह १णिक महाराजके पुत्र अभयकुमारकी बुद्धिमत्ताका वर्णन श्रेणिकचरिममें देखना चाहिये। २इस पुस्तकके गुजराती अनुवादक महाशयने दक्क जातिका अर्थ चांटाल जाति किया है। ठक्क (ढाक) एक प्रकारके याजेका नाम है, इसे अकसर नीचजातिके लोग यजाते हैं। इस लिये ढक्का यजानेवालोंको ठक्क जाति कह सकते हैं। परन्तु हम यह नहीं कह सकते हैं कि, कंजूसी में चांडाल प्रसिद्ध है या नहीं।
SR No.010630
Book TitleUpmiti Bhav Prapanch Katha Prastav 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherNathuram Premi
Publication Year1911
Total Pages215
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy