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________________ तब कामियोंको किस वातकी कमी है ? अतएव काम पुरुषार्थ ही सबसे मुख्य है। और इसी लिये कहा है कि: फामाख्यः पुरुषार्थोऽयं प्राधान्येनैव गीयते। नीरसं काप्टकल्पं हि धिकाम विकलं नरम् ॥ अर्थात-यह काम पुरुषार्थ ही सबसे प्रधान कहा जाता है । जो लोग कामपुरुषार्थसे रहित हैं, वे सूखे हुए काटके समान हैं। उन्हें धिक्कार है। ___ यह नुनकर यह जीव हर्षकी अधिकताके कारण अपने हृदयसे भी बाहर होगया अर्थात् खुशीके मारे अपने आपमें न समाया और प्रकाशरूपसे बोल उठा:- "भट्टारक महाराजने बहुत अच्छा कहा ! बहुत अच्छा कहा ! बहुत समयके पीछे आज यह सुन्दर व्याख्यान आरंभ हुआ है। यदि आप ऐसा व्याख्यान प्रतिदिन देंगे, तो में अवकाशरहित होनेपर भी अर्थात् मुझे फुरसत नहीं मिलेगी तो भी मन लगाकर सुना करूंगा।" इस सत्र कथनको धर्माचार्य महारानके द्वारा जीवके शक्तिपूर्वक मुंह खोले जानेके समान समझना चाहिये। (और इसे सुनकर जीवने जो मुंहसे प्रशंसा प्रगट की है, सो भिखारीका मुंह खोलना है।) इस जीवने व्याख्यानसे प्रसन्न होकर जब इस प्रकार कहा, तब धर्माचार्य महाराजके मनमें यह बात आई कि, महामोहकी चेष्टा देखो, जो उसके मारे हुए प्राणी केवल प्रसंगवश कहीं हुई अर्थ और कामकी कथाओंमें तो लवलीन हो जाते हैं परन्तु यत्नसे (उसीके उद्देश्यसे) कही जानेवाली धर्मकथामें नहीं होते। हमने तो अपनी धर्मकथाके वर्णनमें प्रसंग पाकर पहले अर्थ (धन) और काममें प्रीति करनेवाले क्षुद्र प्राणियोंके अभिप्राय वर्णन किये हैं,
SR No.010630
Book TitleUpmiti Bhav Prapanch Katha Prastav 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherNathuram Premi
Publication Year1911
Total Pages215
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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