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________________ ( अनंतानुबंधी मोघ, मान, माया, लोभ, ) और मिथ्यात्व राग द्वेषादि सारी अन्तरंग सेनाके दोपोंको 'सर्वज्ञभापित' वचन Ana हैं। इसी प्रकारसे ज्ञान, दर्शन, चारित्र,संतोप, प्रशम, तप, संयम, सत्यादि करोडॉ सुभटोंसे भरी हुई अन्तरंगकी सेना है। इस सेनाके गुणों के गौरवको भी 'सर्वनके वचन' पद पदपर प्रगट करते हैं। इसके सिवाय एकेन्द्रियादिके भेदसे अनन्त प्रकारके भवप्रपंचको भी जो कि अतिशय दुःखरूप है, सर्वज्ञके वचन सम्पूर्णरूपसे वर्णन करते हैं। ऐसी महाभित्तिका अर्थात् सर्वज्ञवचनरूपी बड़ी भारी दीवालका आश्रय लेकर कहने के कारण मुझ सरीखे अल्पज्ञके वचनोंको भी जैनेन्द्र सिद्धान्तसे निकले हुए झरने समझना चाहिये । संसारमें धर्म, अर्थ, काम और संकीर्ण (धर्म,अर्थ, काम तीनोंका मिश्रण) इन चारके आश्रयसे चार प्रकारकी कथाएं होती हैं। अर्थात् कथाओंके धर्मकथा, अर्थकया, कामकथा और संकीर्ण कथा (मिश्रित ) ये चार भेद होते हैं। इनमेंसे अर्थकथा उसे कहते हैं, जिसमें साम दाम आदि नीतिका, धातुवाद आदि शिल्पका, और कृपि ( खेती) मसि वाणिज्य आदि जीविकाओंका वर्णन किया जाता है और इसलिये जो धन कमानेका उत्तम द्वार होती हैं। इस कथासे परिणाम वेशित रहते हैं, इस हेतुसे यह पापका वध करनेवाली और दुर्गतिको पहुंचाने में तत्पर मानी गई है। कामकथा उसे कहते हैं, जिसमें विपयोंके कारणरूप अभिप्राय गर्भित रहते हैं अर्थात् जिससे विषय . पोषण होता है, अवस्था और चतुराई जिससे सूचित होती है और अनुराग (प्रेम) तथा चेष्टा आदिकोंसे जो उठती है। यह मलीन विषयों में रागको बढ़ानेवाली और बुद्धिको उलटी करनेवाली है, अतएव कुगतिमें ले जानेवाली है। बुद्धिमान लोग धर्मकथा उसे कहते हैं, जिसकी
SR No.010630
Book TitleUpmiti Bhav Prapanch Katha Prastav 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherNathuram Premi
Publication Year1911
Total Pages215
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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