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________________ ܘܩܵܐ अर्थात् परम्परारूपसे मोक्षके कारण हैं, इसलिये भगवानके शासनमन्दिरसे वाहिर नहीं हैं, अर्थात् वे भी जिनशासनमें प्राप्त होते हैं, ऐसा नियम है । इसलिये दूसरे बुद्धिमान् जीवोंको भी मोक्षके प्राप्त करा देनेवाले इस भगवच्छासनमन्दिरमें भावपूर्वक अवश्य ही रहना चाहिये। अभिप्राय यह है कि इस मन्दिरमें रहनेवालोंको तो वे सुंदर भोगादिक अनायास ही प्राप्त हो जाते हैं। क्योंकि उन भोगोंका प्राप्त करानेवाला और दूसरा कोई कारण नहीं है अर्थात् जिन कारणोंसे मोक्षकी प्राप्ति होती है, उन्हींसे सुंदर भोगादि भी प्राप्त हो जाते हैं। इस प्रकार जैनशासनमंदिर अविनाशी सुखोंका कारण है, इसलिये इसे निरन्तर उत्सवमय कहा है । और पूर्वकथामें कहे हुए भिखारीने जिस प्रकार अनेक विशेषणोंवाले राजमंदिरको देखा था, उसी प्रकारसे यह जीव भी वैसे ही विशेषणोंसे युक्त सर्वज्ञशासनरूप मंदिरको देखता है। ___ आगे पूर्वकथाम कहा ह कि, " वह निप्पुण्यक भिखारी उस सदा आनन्दसे पूर्ण रहनेवाले राजमन्दिरको देखकर ' यह क्या है ? इस प्रकार आश्चर्ययुक्त होकर विचार करने लगा। परन्तु उन्मादके कारण उसे उस राजमन्दिरके विशेष गुण यथार्थमें विदित नहीं हुए। " उसी प्रकारसे यह जीव अपने कर्मोंका विच्छेद होनेपर किसी प्रकारसे जिनशासनके समीप आता है और यह क्या है ?' इस तरह जिज्ञासा करता है । परन्तु उस अवस्थामें उन्मादके समान मिथ्यात्वकर्मपरमाणुओंके कारण यथार्थमें इस जिनमतके विशेष गुणोंको नहीं जानता है । और कथामें जो आगे कहा है कि, " उस भिक्षुकको जब कारणवश कुछ चेतना हुई, तब उसके जीमें यह बात आई कि, इस सकल आश्चर्योंके स्थानभूत राजमन्दिरको इस स्वकर्म• १ इसका सम्बन्ध पृष्ठ २० के पहले पारिप्रोफके साथमें है। कि उसी प्रकारसे पर विशेष गुणा । परन्तु उन्माद
SR No.010630
Book TitleUpmiti Bhav Prapanch Katha Prastav 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherNathuram Premi
Publication Year1911
Total Pages215
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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