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________________ पापपरमाणुओंके संचयको तो शिथिल करता है और पुण्यपरमाणुओंको. बहुत ही अच्छे फल देनेवाले नये विपाकसे युक्त करता है अर्थात् उन परमाणुओंकी शुभविपाकरूप अनुभागशक्तिको बढ़ा देता है। ये परमाणु जत्र उदयमें आते हैं, तत्र संसारसे विरक्त करते हैं, और उससे (विरक्ततासे) नानाप्रकारके सुख तथा अन्तमें मोक्ष प्राप्त करा देते हैं । इसी लिये उन पुण्यानुवन्धी भोगोंको सुन्दर विपाकवाले कहे हैं। और जो शब्दादि विषय पापानुबन्धिपुण्यके उदयसे प्राप्त होते हैं, वे तत्काल ही प्राण ले लेनेवाले लड़की तरह परिणाममें भयंकर होते हैं, इसलिये उन्हें यथार्थमें भोग ही नहीं कह सकते हैं। क्योंकि वे मरुभूमिके (मारवाडके) मृगजलकी तरंगोंके समान उनके पीनेकी इच्छासे दौड़नेवाले पुरुषोंके श्रमको विफल करते हैं और इसलिये और भी अधिक प्यासको बढ़ाते हैं, परन्तु प्राप्त नहीं होते हैं। और यदि किसी तरहसे प्राप्त हो जाते हैं, तो परिणामोंको कपार्योसे मलिन करते हैं, और तब वह ओछे अभिप्रायवाला पुरुष अन्धा होकर उनमें बहुत ही अधिक प्रीति करता है । फिर जब कुछ दिन तक ठहरनेवाले उन भोगोंको भोग लेता है, तब उन (भोगोंके) प्राप्त करानेवाले पहले बाँधे हुए थोड़ेसे पुण्य परमाणुओंको भी खिरा देता है और अतिशय तीव्र तथा गुरुतर पापोंको बांधता है। पीछे जब वे पापकर्म उदयमें आते हैं, तब वह जीव अनन्त दुःखरूपी जलचारी जीवोंसे भरे हुए संसारसमुद्रमें अनन्त कालतक परिभ्रमण करता है । इसीलिये नो शब्दादि विषय पापानुवन्धिपुण्यके उदयसे प्राप्त होते हैं, उन्हें दारुणपरिणामी कहा है। अर्थात् उनका फल भयानक है। ___ संसारी जीवोंके जो सुन्दर परिणामवाले अर्थात् पुण्यानुबन्धीपुण्यसे उत्पन्न हुए शब्दादि विषय हैं, वे ऊपर कहे हुए न्यायसे
SR No.010630
Book TitleUpmiti Bhav Prapanch Katha Prastav 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherNathuram Premi
Publication Year1911
Total Pages215
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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