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________________ • और जैसे उस राजमंदिरमें विलासिनी स्त्रियां कही हैं, वैसे इस मुनिप्रणीत जिनशासनमें सम्यग्दर्शन धारण करनेमें अणुव्रतोंके पालन करनेमें और जैन साधुओंकी भक्ति करनेमें तत्पर रहनेके कारण श्राविकाओंको विलासिनी स्त्रियां समझना चाहिये । श्रावकोंके समान ये श्राविकाएं भी सर्वज्ञ महाराजादिकी आराधनामें तत्पर रहती हैं, निरन्तर ज्ञानका अभ्यास करती हैं, सम्यग्दर्शनसे आत्माको अतिशय दृढ़ करती हैं, अणुव्रत धारण करती हैं, गुणवत' ग्रहण करती हैं, शिक्षाव्रतोंका अभ्यास करती हैं, अनेक प्रकारके तप करती हैं, जैनग्रन्थोंका स्वाध्याय करनेमें लवलीन रहती हैं, साधुओंको अपनी भलाई करनेवाला आहारदान देती हैं, गुरुओंके चरणोंकी वन्दना करके हर्पित होती हैं, अच्छे साधुओंको नमस्कार करके संतुष्ट होती हैं, साध्वियोंकी कही हुई धर्मकथाएं सुनकर प्रसन्न होती हैं, अपने सधर्मी जनोंको अपने भाई बंधुओंसे भी अधिक समझती हैं, जिस देशमें सधर्मी जन नहीं रहते हैं, वहां रहनेसे उदास रहती हैं, अतिथियों वा साधुओंको भोजन कराये विना भोजन करनेसे प्रसंन्न नहीं होती हैं और जिनेश्वर भगवानका धर्मसेवन करनेसे अपने आत्माको संसारसमुद्रसे प्रायः पार हुआ ही समझती हैं। अतएव उस जिनशासनरूपी मन्दिरके भीतर पूजा करनेवाले राजसेवकोंके समान ये श्राविकाएं पहले कहे हुए श्रावकोंके साथ प्रतिबद्ध होकर अथवा उनसे पृथक् होकर निवास करती हैं। और यदि कभी कोई स्त्रियां ऊपर कहे हुए गुणोंके विना ही उक्त शासनमंदिरके . १ अहिंसा, सत्य, अचौर्य, ब्रह्मचर्य, अपरिग्रह । २ दिग्नत, देशव्रत, अनर्थदण्डवत । ३ सामायिक, प्रोपधोपवास, भोगोपभोगपरिमाण और अतिथिसंविभाग। ४ श्रावकोंकी स्त्रियां होकर पत्नी अवस्थामें । ५ कुमारी अथवा विधवा अवस्थामें।
SR No.010630
Book TitleUpmiti Bhav Prapanch Katha Prastav 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherNathuram Premi
Publication Year1911
Total Pages215
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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