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________________ और संघस्वरूप होते हैं, अर्थात् कुलके गणके और संघके जुदे २ गणचिन्तक होते हैं, करोड़ों नगर और असंख्य ग्राम तथा खानि स्वरूप गच्छोंकी गीतार्थपनेसे उत्सर्ग तथा अपवाद मार्गकी स्थानयोजना करनेमें निपुण होते हैं, अर्थात् वे शास्त्रोंका मर्म भलीभांति जा• नते हैं, इसलिये किसीको उत्सर्ग मार्गमें और किसीको अपवाद मार्गमें लगा देते हैं और उन्हें प्रासुक तथा दोपरहित आहार, पानी, औषध, उपकरण (पिछी कमंडल पुस्तक) उपाश्रय (वस्तिका) आदि सम्पादन कराके स्वयं निरन्तर निराकुल रहते हुए सबका पालन करनेमें समर्थ होते हैं। इन्हें सब प्रकारसे योग्य वा अनुकूल समझकर आचार्य महात्मा नियुक्त करते हैं, इसलिये ये ही नियुक्तक (कामदार) नामधारण करनेके योग्य हैं। जिनशासनरूपी महलमें तलवर्गिक अर्थात् कोटपालोंके स्थानमें सामान्यभिक्षुकोंके (सर्वसाधुओंको ) समझना चाहिये । क्योंकि वे आचार्योंकी आज्ञाका ध्यान देकर पालन करते हैं, उपाध्यायोंकी आज्ञा मानते हैं, गीतार्थ मुनियोंकी विनय करते हैं, गणचिन्तकोंकी वाँधी हुई सीमाका उल्लंघन नहीं करते हैं, गच्छ, कुल, गण, और संघके कायौमें आपको लगाते हैं और यदि गच्छ कुल आदिपर कोई अकल्याण करनेवाली विपत्ति आ पड़ती है, तो अपना जीवन देकर भी उनकी रक्षा करते हैं । इसलिये वे शूरता, भक्तता, विनीतता, नव्रता, आदि स्वभावोंसे कोटपाल नामके सर्वथा योग्य हैं। ___ इस प्रकारसे जो जिनशासनमन्दिर राजमंदिरके समान कहा गया है, आचार्य उसको अपनी आज्ञामें रखते हैं, उपाध्याय उसकी चिन्ता करते हैं, गीतार्थवृषभ रक्षा करते हैं, गणचिन्तक सब ओरसे पुष्टि करते हैं, और सामान्यसाधु निश्चिन्त होकर उसके सब कार्य करते हैं। अतएव इसे इन आचार्यादिकोंसे व्याप्त समझना चाहिये।
SR No.010630
Book TitleUpmiti Bhav Prapanch Katha Prastav 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherNathuram Premi
Publication Year1911
Total Pages215
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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