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________________ (क) इस आठवें अध्याय में, और भागे मी, मादिपुराण वर्णित क्रियाओं के बो भी मत्र दिये हैं वे प्रायः सभी प्रादिपुराण के विरुद्ध हैं | मादिपुराण में गर्भाधामादिक क्रियाओं के मंत्रों को दो भागों में विभाबित किया है-एक 'सामान्यविषय मंत्र' और दूसरे विशेषविषय मंत्र' । 'सामान्यविषय मंत्र' वे हैं जो सब क्रियाओं के लिये सामान्य रूप से निर्दिछ हुए हैं और विशेषविषय' उन्हें कहते हैं जो खास खास क्रियामों में अतिरिक्त रूप से नियुक्त हुए हैं । सामान्यविषय मंत्र १ पीठिका, २ जाति, ३ निस्तारक, ४ ऋषि, ५ सुरेन्द्र, ६ परमरान और ७ परमेष्ठि मंत्र-भेद से सात प्रकार के हैं।इन सबों को एक नाम से 'पीठिका-मंत्र कहते हैं। क्रिया-मंत्र, साधन-मंत्र तया धाहति-मंत्र भी इनका नाम है और ये 'उत्सर्गिक-मंत्र भी कहलाते हैं, जैसाकि श्रादिपुराण के निम्न नाश्यों से प्रकट है। एते तु पीठिका मंत्राः सात या विजोत्तमः। प: सिद्धार्चन फयाक्षाधानादिक्रियाषिधौ ॥ ७७ ॥ कियामंधास्त एतेस्युराधानादिक्रियावित्री। सूझे गणधरोद्धाय यान्ति साघनमंत्रताम् ॥ ७८ ॥ सध्यास्वमित्रये देवपूजने नित्यकर्महि । भवन्याहुतिमंत्रायत पते विधिलाधिताः ॥७॥ साधारणास्त्विमे मंत्राः सर्वव क्रियाविधौ । यथासमयमुझेन्ये विशेषविषयांब सान् ॥ ३१॥ , क्रियामंत्रास्त्विहोया ये पूर्वमनुवर्णिताः। सामान्यविषयाः सप्त पीठिकामंधरुडयः ।। २१५ ॥ • ते हि साधारणा सक्रियानु विनियोगिनः । तत उत्सर्गिकाताम्मंत्रान्मत्रविको विदुः ॥२१६ ।। विशेषविपया मैत्राः क्रियासूनानु वर्शिताः ।
SR No.010629
Book TitleGranth Pariksha Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherJain Granth Ratnakar Karyalay
Publication Year1928
Total Pages284
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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