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________________ [२६] त्वदधि तथा छठे में 'स्वामिन्नर्थ' और 'इष्टं धामरसायनस्य' नाम के पच ज्यों के त्यों उद्धृत पाये जाते हैं । और ये सब पब 36 स्तोत्र में क्रमशः ० १६, १, १३, १६, ३और २५ पर दर्ज हैं। (१०) सोमदेवमूरि-प्रणीत यशस्तिलक' के गी कुछ पोंका संग्रह पाया जाता है, जिनमें से दो पद्य नमूने के तौरपर इस प्रकार हैं मूढायं मवानादौ तथानायसनानि पट् । अष्टौ शंकादयो दोपाः सम्यक्त्वे पंचविंशतिः ॥१०-२६॥ अद्धा मक्तिस्तुधिष्ठिानमनुष्यता क्षमा सत्वम् । यौते सप्तगुणास्त दातारं प्रशंसन्ति ॥१०-११॥ इनमें से पहला 'यशस्तिलक के छठे आवास का और दूसरा पाठ आवास का पथ है। पहले में 'शंकादयश्चेति हग्दोषा। की जगह 'शंकादयो दोषा: सम्यक्त्व का परिवर्तन किया गया है और दूसरे में 'शक्ति ' की जगह 'सत्वम् बनाया गया है। ये दोनों ही परिवर्तन साहित्य की दृष्टि से कुछ भी महत्व नहीं रखते और म अर्थकी दृष्टि से कोई खास भेद उत्पन्न करते हैं और इसलिये इन्हें व्यर्थ के परिवर्तन समझना चाहिये। (११) इसीतरह पर और मी कितने है। चैनपंधों के पछ इस विषयांचार में फुटकर रूप से इधर उधर संगृहीत पाये जाते हैं, उनमें से दो चार ग्रंथों के पोंका एक र नमूना यहाँ और दिये देता हूँ-- विवर्गसंसाधनमन्तरेण पशोरिवायुविफल नरस्य । वापि धर्म प्रवरं वदन्ति न त विना यद्भवतोऽर्थकामौ 10-81 यह सोमप्रमाचार्यको 'सूक्तमुक्तावली का जिसे 'सिन्दूरप्रकर' भी कहते हैं, तीसरा पर्व है। समाः स्थूखास्तथा जीवाः सन्खुम्बरमभ्यया। • समिमित्तं जिनोदि पंचोदुम्बरवर्जनम् ॥ १०-१०४॥
SR No.010629
Book TitleGranth Pariksha Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherJain Granth Ratnakar Karyalay
Publication Year1928
Total Pages284
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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