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________________ २१७' सालापरणके ये दोनों पपस्व संहिवाके ने काम और पर है। तिसरे पके उत्तपमें भेद है। महिलामें यह उता सारस साही संहिच्यामि मैदानांवोधाय बिनसहिताम् ।। पाक समझ सकते हैं। विस अन्य मंचावरण मी प्रपन्नाकर अपनी बनाया हुब्बम हो, मह मन्द क्या मालकदेव वैसे महाकवियाँका पनाया ना हो लता है ।कमी नहीं 1 पासपमें यह अन्य एकसमहामन्य है। इसमें समयोकर पल्कि दोन भी मह किया गया है। प्रवक्ताकी उपियाँ इसमें बहुत कम है। बेख सके एक निम लिखित पथसे भी प्रकार है- । । लोका पुपमा किश्चिमिष्यते छत्यबोषका मायस्वबनुसारेण मधुलाम्य विद कचित् ॥ १० ॥ मारक एक्सपिका समय विकमको १३ को धताब्दी पाया जाता है। इसलिए प्रखपाल, जिसमें उछ मनकबीकी संदिवाको पहुच नकल की है कि मकी १३वी शताब्दी के माया लाहुमा है, इसमें कोई संदेह नहीं है। (४) प्रतिछापाको पीशवादी पारा वाया में एक प्रवल प्रभाव और भी है। और वह यह है कि इसमें मातापरवीके मनाए दूर 'बिनमाल' नामक प्रतिमा और 'सागरपामृत तसे पर, ज्याकलों गाम परिवर्तन साप, पाये नाते दिनका नमूना इस प्रकार है किमिच्न पानेन जगवाया पूर्व का चकिमिः क्रियते सोईचहा कसामो मतः ॥२७॥ देशकालानुसारेण ज्यालतो वा समासता। कुर्वनां कियां शको वानुषि मरूपयेत् ॥ . पला पय 'सागरपात के बारे बयाका २८ मां मार झा पत्र 'चिना के पहले बचापका १४० वा पप है। बिनगावलको, पति मालापरवावे, वि.सं. १२०५ में चोर पामारधामतको उसको बीकासहित कि० १९७ में बनाकर समाप्त किया है। इसे सह है कि वह माविलापाठ किमको १३वी मावादी पाबका पना हुआ है। (५) अपके तीसरे परिच्छेदमें, एकसान पर यह दिवस एकदिनमारने निवासिनीके नायके लिए कर नापार (मुस्पषभी होना चाहिए, तपय बारसे दिया है: नृत्यतिकालिनरम्यनत्यमंत्पडितम् । पुर पार्थये यक्षपक्षीमवनसंयुतम् । ११७॥ मन्त्रको प्रतिक्षा और सिवि भी एक ऐसा ही मार किया है।
SR No.010629
Book TitleGranth Pariksha Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherJain Granth Ratnakar Karyalay
Publication Year1928
Total Pages284
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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