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________________ [१५७]. है। श्रीपद्मनन्दिप्राचार्य ने भी अपने प्रावकाचार में उन सब कों से दूर रहने का प्रयवा उनके त्याग का उपदेश दिया है. निनस सम्यादर्शन मेला, तपा व्रत खंडित होता हो । यथा. पेशं तं नरं तत्स्वं तत्कमाणि च नाभयेत्। , मशिन वर्शनं येन येन च तवरडलम् ।। २६ ॥ जोक में, हिन्दूधर्म के अनुसार, पीपल को विष्णु भगवान का रूप माना जाता है। विष्णु भगवान ने किसी तरह पर पीपल की मति धारण की है, वे पीपल के रूप में भूतल पर अवतरित हुए हैं, और उनके आश्रय में सब देव भाकर रहे हैं। इसलिये गो पीपल की पूजा करता है वह विष्णु भगवान की पूजा करता है इतना ही नहीं, किन्तु सर्व देवों की पूजा करता है--ऐसाहिन्दुओं के पापाचरखएडादि क्तिने ही ग्रंथों में विस्तार के साथ विधान पाया जाता है । इससे उनके यहाँ पीपल के पूजन का बड़ा माहाल्य है और उसका सर्व पापों का नाश कारने प्रादि रूप से बहुत कुछ पंख वर्णन किया गया है और यही रस विषय के कुछयोसवाक्य नमूने के तौर परास प्रकार : "अश्वत्य पो भगवान विष्णुरेव न संशयः।" "अश्वत्थपूनको यस्तु स एष हरिपूजकः। अश्वत्थमूर्तिमंगवान्स्वपमेष यतो विज" "दाम्यवस्थमाब सर्वपासनम् । साक्षादेव स्वयं विष्णुरस्वत्योऽविनाविश्वरा ।" "अश्वत्यपूजितो येन पूजिताः सर्वदेवताः। अश्वत्यच्छदिवो येन छदिताः सर्व देवताः॥" "प्रलय सेचयेविसंप्रदक्षिणमाविशन् । पापोपावमयानां पापनायो मत भूषम् "
SR No.010629
Book TitleGranth Pariksha Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherJain Granth Ratnakar Karyalay
Publication Year1928
Total Pages284
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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