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________________ [५] को और भी बेढंगा किया है क्योंकि इससे पूर्व कथन का पूरीतरह पर समर्थन नहीं होता-~अथवा यो कहिये कि सर्व साधारण पर यह प्रकट किया है कि उन्होंने सरंभ, समारम तपा मासका अभिप्राय क्रमशः भूत, वर्तमान तथा भविष्यत् काल सा है। परंतु ऐसा समझना भूब है। क्योंकि पूज्यपाद बैसे बाधाों ने सर्वार्थ सिद्धि प्रादि मयों में प्रयत्नादेश को 'सरंग साधनसमन्यासीकरण को 'समारंभ और प्रक्रम या प्रथमप्रवृत्ति को 'आरंभ बताया है। (a) पाँचौ पधों के अनन्तर प्रय में पोकरण, भाकर्षण संभन, मारय, विद्वेषण, उचाटन, शांतिकरण और पौष्टिक कर्म नाम के पाठकों के समय में आप की विधि बताई गई हैरीद यह प्रकट किया गया है कि किस वर्गविषयक मंत्र को किस समय, किस भासन वया मुदा से, कौनसी दिशा की ओर मुख करके, कैसी माला कर और मंत्र में कौमसा पक्षाव क्षगाकर जाना चाहिये । साथ ही, कुछ कों के सम्बन्ध में नप के समय माता का दाना पकाने के लिये वो बो गुती अंगूठे के साथ काम में लाई जावे उसका मी विधान किया है। यह सब प्रकार का विधि-विधान मी भानाव से बार की चीमई--उससे नहीं लिया गया है। साथ ही, इस विधाम में भाखामों का कथन दो बार किया गया है, जो दो जगहों से उठाकर रक्सा गया मालूम होता है और उससे कथन में कितना ही पूर्वापर विरोध भागया है । यथाः मकर्मवि""माझा समशिमिता ॥ ४॥ अर्थात-पकमा म कर्म में समास की माला का और निषेध (भारण) का में जीयापूते की माला से सोनालीने पुत्र सीब नामक किसी माविकील की- समझा है। विधान किया यसरी जगह स्मन वा दुध के पवारान दोनों
SR No.010629
Book TitleGranth Pariksha Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherJain Granth Ratnakar Karyalay
Publication Year1928
Total Pages284
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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