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________________ ( ५७ ) (५) भद्रवाहसंहिता के दूसरे खंडमें 'लक्षण' नामका एक अध्याय नं० ३७ है, जिसमें प्रधानतः + स्त्रीपुरुषों के अंगों-उपांगों आदि के लक्षणों को दिखलाते हुए उनके शुभाशुभ फलका वर्णन किया है । इस अध्यायका पहला पद्य इस प्रकार है जिनदेवं प्रणम्यादौ सर्व दिवुधार्चितम् । लक्षणानि च वक्ष्ये भद्रबाहुर्यथागमं ॥ १ ॥ इस पयमें, मंगलाचरणके बाद लिखा है कि 'मैं भद्रबाहु आगमके अनुसार लक्षणांका कथन करता हूँ।' इस प्रतिज्ञावाक्य से एक दम ऐसा मालूम होता है कि मानो भद्रबाहु स्वयं इस अध्यायका प्रणयन कर रहे हैं और ये सच शब्द उन्हीं की कलम से अथवा उन्हींके मुखसे निकले हुए हैं; परंतु नीचे के इन दो पयोंके पढ़नेसे, जो उक्त पद्यके अनन्तर दिये हैं, कुछ और ही मालूम होने लगता है । यथा: पूर्वमायुः परीक्षेत पालक्षणमेव च । आयुहननृनारीणां लक्षणैः किं प्रयोजनम् ॥ २ ॥ नारीणी वामभागे तु पुत्रस्य च दक्षिणे । यथेोकं लक्षणं तेषां भवावचो यथा ॥ ३ ॥ " पय नं० ३ में 'भद्रबाहुवचो यथा' ये शब्द आये हैं, जिनका अर्थ होता है ' भद्रबाहुके वचनानुसार अथवा जैसा कि भद्रबाहुने कहा है ।' अर्थात् ये सब वचन खास भद्रवाहुके शब्द नहीं हैं - उन्होंने इस अध्याय का प्रणयन नहीं किया बल्कि उनके वचनानुसार ( यदि यह सत्य हो ) किसी दूसरे ही व्यक्तिने इसकी रचना की है। आगे भी इस अध्यायके श्लोक नं० ३२, १३१ और १९५ में यही 'भद्रवाहुवचो यथा शब्द पाये जाते हैं, जिनसे इस पिछले कथानकी और भी + अन्तके २० पद्योंमें कुछ थोडेसे हाथी घोड़ोंके भी लक्षण दिये हैं। ५
SR No.010628
Book TitleGranth Pariksha Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherJain Granth Ratnakar Karyalay
Publication Year1917
Total Pages127
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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