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________________ (२३) (घ) एक स्थानपर, इस ग्रंथमें, 'जटिलकेश' नामके किसी विद्वानका उल्लेख मिलता है, जो इस प्रकार है: रविवाराद्या क्रमतो वाराः स्युः कथितजटिलकेशादेः । वारा मंदस्य पुनर्दद्यादाशी विपस्यापि ॥३-१०-१७३॥ इन्द्रानिलयमयक्षत्रितयनदहनाधिरक्षा हरितः । इह कथित जटिलकेशप्रभृतीनां स्युः क्रमेण दिशः -१७४।। इन उल्लेखवाक्योंमें लिखा है कि रविवारादिकके क्रमसे वारोंका और इन्द्रादिकके क्रमसे दिशाओंका कथन जटिलकेशादिकका कहा हुआ है, जिसको यहाँ नागपूजाविधिमें, प्रमाण माना है। इससे या तो द्वादशांगश्रुतका इस विषयमें मौन पाया जाता है अथवा यह नतीजा निकलता है कि ग्रंथकान उसके कथनकी अवहेलना की है। . (6) तीसरे खंडके आठवें अध्यायमें उत्पातोंके भेदोंका वर्णन करते हुए लिखा है: एतेषां वेदपंचाशद्भेदानां वर्णनं पृथक् । कथितं पंचमे खडे कुमारेण सुविन्दुना ॥ १४ ॥ अर्यात-इन उत्पातोंके ५४ भेदोंका अलग अलग वर्णन कुमारविन्दुने पाँचवें खंडमें किया है। इससे साफ जाहिर है कि. ग्रंथकर्ताने कुमारविन्दुके कथनको द्वादशांगसे श्रेष्ठ और विशिष्ट समझा है तमी उसको देखनेकी इस प्रकारसे प्रेरणा की गई है। साथ ही, यह भी मालूम होता है कि कुमारविन्दुने भी कोई संहिता जैसा मंथ बनाया है जिसमें पाँच खढ जरूर हैं । जैनहितैषीके छठे भागमें 'दिगम्बरजेनग्रंथकर्ता और उनके ग्रंथ' नामकी जो बृहत् सूची प्रकाशित हुई है उसमें भी कुमारविन्दुके नामके साथ "जिनसंहिता' का उल्लेख किया है। यह संहिता अभीतक मेरे देखनेमें नहीं आई; परंतु जहाँतक मैं समझता हूँ 'कुमारविन्दु ' नामके कोई ग्रंथकर्ता जैनविद्वान् भद्रबाहु श्रुतकेवलीसे पहले नहीं हुए । अस्तु । द्वादशांग श्रुत और श्रुतके
SR No.010628
Book TitleGranth Pariksha Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherJain Granth Ratnakar Karyalay
Publication Year1917
Total Pages127
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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