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________________ (२२) (ग) पहले खडके पहले अध्यायमें 'गौतमसंहिता' को देखकर इस संहिताके कथन करनेकी प्रतिज्ञा की गई है। साथ ही दो स्थानों पर ये वाक्य और दिये हैं: १-आचमनस्वरूपभेदा गौतमसहितातो ज्ञातव्याः । २-पानभेदा गौतमसहितायां दृष्टव्याः । भूम्यादिदानभेदाश्च प्रथान्तरार उत्सेयाः। इनमें लिखा है कि (१) आचमनका स्वरूप और उसके भेद गौतमसंहितासे जानने चाहिए। (२) पानोंके भेद गौतमसंहितामें देखने चाहिए और भूमि आदि दानके भेद दूसरे ग्रंथोंसे मालूम करने चाहिए। इस संपूर्ण कथनसे 'गौतमसंहिता' नामके किसी ग्रंथका स्पष्टोल्लेख पाया जाता है। गौतमका नाम आते ही पाठकोंके हृदयमें भगवान महावीरके प्रधान गणधर गौतमस्वामीका खयाल आजाना स्वाभाविक है; परन्तु यह सर्वत्र प्रसिद्ध है कि गौतमस्वामीने द्वादशांग सूत्रोंकी रचना की थी। इसके सिवाय उन्होंने संहिता जैसे किसी अनावश्यक पृथक् ग्रंथकी रचना की हो, इस बातको न तो बुद्धि ही स्वीकार करती है और न किसी माननीय प्राचीन आचार्यकी कृतिमें ही उसका उल्लेख पाया जाता है । इस लिए यह गौतमसंहिता' गौतमगणधरका बनाया हुआ कोई ग्रंथ नहीं है । यदि ऐसा कहा जाय कि संपूर्ण द्वादशांगसूत्रों या द्वादशांग श्रुतका नाम ही 'गौतमसंहिता' है तो यह बात भी नहीं बन सकती । क्योंकि ऊपर उद्धृत किये हुए दूसरे वाक्यमें भूमि आदि दानके भेदोंको ग्रंथान्तरसे जाननेकी प्रेरणा की गई है; जिससे साफ मालूम होता है कि गौतमसंहितामें उनका कथन नहीं था तभी ऐसा कहनेकी जरूरत पैदा हुई और इसलिए द्वादशांगके लक्षणानुसार ऐसे अधूरे ग्रंथका नाम, जिसमें दानके भेदोंका भी वर्णन न हो, 'द्वादशांगश्रुत' नहीं हो सकता । बहुत संभव है कि इस संहिताका अवतार भी भद्रबाहुसंहिताके समान ही हुआ हो, अथवा यहाँ पर यह नाम दिये जानेका कोई दूसरा ही कारण हो।
SR No.010628
Book TitleGranth Pariksha Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherJain Granth Ratnakar Karyalay
Publication Year1917
Total Pages127
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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