SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 25
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ (१७) होयं एम अंतःकरण कंबुल करतु नयी; ते अंथ वाराहीसहिता करतां पणं अति विस्तारवालो . होवो जोइए।" .. समझमें नहीं आता कि क्यों हीरालालजीने ऐसा अधूरा, गलत और कल्पित अनुवाद प्रकाशित करनेके लिए दिया और क्यों उसे. भीमसी माणिकजीने ऐसी संदिग्धावस्थामें प्रकाशित किया । यदि सचमुच ही. श्वेताम्बरसम्प्रदायमें ऐसी कोई भद्रबाहुसंहिता मौजूद है जिसका उपर्युक्त गुजराती अनुवाद सत्य समझा जाय तो मुझे इस कहनेमें भी कोई संकोच नहीं है कि वह संहिता और भी अधिक आपत्तिके योग्य है। ग्रन्थ कब बना? और किसने बनाया ? - अब यहाँ पर, विशेष रूपसे परीक्षाका प्रारंभ करते हुए, कुछ ऐसे प्रमाण पाठकोंके सम्मुख उपस्थित किये जाते हैं जिनसे यह भले प्रकार स्पष्ट हो जाय कि यह ग्रंथ भद्रबाहु श्रुतकेवलीका बनाया हुआ नहीं है और जब उनका बनाया हुआ नहीं है तो यह कब बना है और इसे किसने बनाया है: १ इस ग्रंथके दूसरे खंडके पहले अध्यायमें ग्रंथके बननेका जो सम्बंध प्रगट किया है उसमें लिखा है कि, एक समय राजगृह नगरके पांडुगिरि पर्वत पर अनेक शिष्य-प्रशिष्योंसे घिरे हुए द्वादशांगके वेत्ता मद्रबाहु मुनि बैठे हुए थे। उन्हें प्रीतिपूर्वक नमस्कार करके शिष्योंने, दिव्यज्ञानके कथनकी आवश्यकता प्रगट करते हुए, उनसे उस दिव्यज्ञान नामके निमित्त ज्ञानको बतलानेकी प्रार्थना की और साथ ही, उन विषयोंकी . नामावली देकर जिनकी क्रमशः कथन करनेकी प्रार्थना की गई, उन्होंने नम्रताके साथ अन्तमें यह निवेदन किया:-- सर्वानेतान्यथोद्दिष्टान् भगवन्वतुमर्हसि । प्रश्नं शुश्रूषवः सर्वे वयमन्ये च साधवः ॥ २० ॥
SR No.010628
Book TitleGranth Pariksha Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherJain Granth Ratnakar Karyalay
Publication Year1917
Total Pages127
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy