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________________ (१६) अध्यायोंका अनुवाद कतई छोड़ दिया है । उनका ग्रंथमें नाम भी नहीं है। रही दूसरे स्तबककी बात, सो वह बिलकुल ही विलक्षण तथा अनुवादक द्वारा कल्पित मालूम होता है । संहिताके पहले अध्यायमें ग्रंथ भरमें क्रमशः वर्णनीय विषयोंकी जो उपर्युल्लिखित सूची लगी हुई है और जिसका अनुवाद अनुवादकने भी दिया है उससे इस स्तबकका प्रायः कुछ भी सम्बंध नहीं मिलता । उसके अनुसार इस स्तबकमें मुहूर्त, तिथि, करण, निमित्त, शकुन, पाक, ज्योतिष, काल, वास्तु, इंद्रसंपदा, लक्षण, व्यंजन, चिह्न, ओषधि, सर्व निमित्तोंका बलाबल, विरोध और पराजय, इन विषयोंका वर्णन होना चाहिए था, जो नहीं है। उनके स्थानमें यहाँ राशि, नक्षत्र, योग, ग्रहस्वरूप, केतुको छोड़कर शेष ग्रहोंकी महादशा, राजयोग, दीक्षायोग, और ग्रहोंके द्वादश भावोंका फल, इन बातोंका वर्णन दिया है । चूंकि यह अनुवाद मूलके अनुकूल नहीं था शायद इसी लिए अनुवादकको मूल ग्रंथकी कापी देनेमें संकोच हुआ हो । अन्यथा दूसरी कोई वजह समझमें नहीं आती । प्रकाशकको भी अनुवाद पर कुछ संदेह हो गया है और इसीलिए उन्होंने अपनी प्रस्तावनामें लिखा है कि__“आ भाषांतर ' खरी भद्रबाहुसंहिता' नामना ग्रंथतुं छे एम विद्वानोनी नजरमां आवे तो ते वावतनो भने अति संतोष थशे, परंतु तेथी विरुद्ध जो विद्वानोनी नजरमा आवे तो हुँ तो लेशमात्र ते दोषने पात्र नथी. में तो सरल अंत: करणथी आ ग्रंथ खरा ग्रंथर्नु भाषांतरछे एम मानी छपाव्यो छे तैम छतां विद्वानोनीं नजरमां मारी भूल लागे तो हुँ क्षमा मागु छु ।” इस प्रस्तावनामें प्रकाशकजीके उन विचारोंका भी उल्लख है जो मूलग्रंथके सम्बंधमें इस अनुवाद परसे उनके हृदयमें उत्पन्न हुए हैं और जो इस प्रकार हैं: " श्रीवराहमिहिरे करेली वाराहीसंहिता अति विस्तारयुक्त ग्रंथ छे, तेना प्रमाणमां आ उपलब्ध थयेलो भद्रवाहुसंहिता ग्रंथ अति स्वल्प छे. श्रीभद्रबाहुस्वामि जेवा श्रुतकेवली पुरुष ज्योतिष विषयनो रपेलो ग्रंथ आटलो स्वल्प
SR No.010628
Book TitleGranth Pariksha Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherJain Granth Ratnakar Karyalay
Publication Year1917
Total Pages127
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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