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________________ ( १०० ) गुरुकी बात मानें, यह बड़ी कठिन समस्या है ! जिस गुरुकी बातको चे नहीं मानेंगे उसीकी आज्ञा उल्लंघनके पाप द्वारा उन्हें नरक जाना पड़ेगा । इस लिए जैनियोंको सावधान होकर अपने बचने का कोई उपाय करना चाहिए । अजैन देवताओंकी पूजा । (१५) भद्रवाहसंहिता के तीसरे संहमें-' ऋषिपुत्रिका' नामके चौथे अध्यायमें - देवताओंकी मूर्तियांके फूटने टूटने आदिरूप उत्पातोंके फलका वर्णन करते हुए, ' अथान्यदेवतोत्पातमाह ' यह वाक्य देकर, लिखा कि' भंग होने पर-कुबेरकी प्रतिमा वैश्यांका, स्कंदकी प्रतिमा भोज्योंका, नंदिवृषभ ( नादिया चैल ) की प्रतिमा कायस्थोंका नाच करती है; इन्द्रकी प्रतिमा युद्धको उपस्थित करती है; कामदेवकी प्रतिमा भोगियोंका, कृष्णकी प्रतिमा सर्व लोकका, अर्हत- सिद्ध तथा बुद्धदेवकी प्रतिमायें साधुओंका नाश करती हैं; कात्यायनी चंडिका - केशी-कालीकी मूर्तियाँ सर्व स्त्रियोंका, पार्वती दुर्गा - सरस्वती - त्रिपुराकी मूर्तियाँ बालकोंका, बराहीकी मूर्ति हाथियोंका घात करती है; नागिनीकी मूर्ति स्त्रियोंके गमका और लक्ष्मी तथा चाकंभरी देवीकी मूर्तियाँ नगरोंका विनाश करती हैं । इसी प्रकार यदि शिवलिंग फूट जाय तो उससे मंत्रीका भेद होता है, उत्तमेंसे अग्निज्वाला निकलने पर देंशका नाश समझना चाहिए; और चर्बी, तेल तथा रुधिरकी धारायें निकलने पर वे किसी प्रधान पुरुषके रोगका कारण होती हैं। यदि इन देवताओंकी भक्ति भाव पूर्वक पूजा नहीं की जाती है तो ये सभी उत्पात तीन महीने के भीतर अपना अपना रंग दिखलाते हैं अर्थात् फल देते हैं । ' इस कथनके आदि और अन्तकी दो दो गाथायें - नमूने के तौर पर इस प्रकार है: " वणियाणं च कुत्रे दो भोयाग पासणं कुपदि । कात्याणं वसो इंदोरणं णिवेदेदि ॥ ८२ ॥ -
SR No.010628
Book TitleGranth Pariksha Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherJain Granth Ratnakar Karyalay
Publication Year1917
Total Pages127
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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