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________________ ग्रन्थ-परीक्षा। - जिनसेनत्रिवर्णाचारमें यह सारा गद्यपद्य ज्योंका त्यों मौजूद है।' परन्तुः विष्णु, आपस्तंब, विष्णुपुराण, वृहस्पति और पराशरके नाम विलकुल उड़ा दिये गये हैं। इससे त्रिवर्णाचारको पढ़ते हुए ये सब वचन यां तो पैठीनसिके मालूम होते हैं, या भद्रबाहुस्वामीके । परतु वास्तवमें त्रिवर्णाचारके कर्ताका अभिप्राय उन्हें भद्रवाहुके ही प्रगट करनेका मालूम होता है, पैठीनसिको तो वह समझा ही नहीं। पराशरके उपर्युक्त वचनके पश्चात् आचारादर्शमें, दो श्लोक 'यम' के हवालेसे, एक श्लोक 'देवल' के नामसे और फिर दो श्लोक 'बौधायन' के नामसे उद्धृत किये हैं। जिनसेनत्रिवर्णाचारमें ये सब श्लोक इसी क्रमसे दिये हैं। परन्तु इन पाँचों श्लोकॉम आदिके तीन श्लोक 'पुष्पदंतेनोक्तं' ऐसा लिखकर पुष्पदंताचायके नामसे उद्धृत किये हैं और शेष बौधायनवाले दोनों श्लोकोंका 'समंतभद्र' के नामसे उल्लेख किया है। वे पाँचों श्लोक इस प्रकार हैं: "ऋतुस्नातां तु यो भायाँ सनिधौ नोपगच्छति । घोरायां भ्रूणहत्यायां युज्यते नात्र संशयः ॥ भार्यामृतुमुखे यस्तु सबिधौ नोपगच्छति । पितरस्तस्य तं मांसं तस्मिन् रेतति शेरते ॥ यः स्वदारामृतुस्नातां स्वस्थः सन्नोपगच्छति । भ्रूणहत्यामवाप्नोति गर्भप्राप्तिं विनाश्य, सः ॥.. त्रीणि वर्षाण्यतुमती यो भायौ नोपगच्छति। : सतुल्यं ब्रह्महत्याया दोषमृच्छत्यसंशयम् ॥ ऋतौ नोपेति यो भार्यामन्तौ यथं गच्छति.। तुल्यमाहुस्तयोर्दोषमयोनौ यश्च सिंचति ॥"
SR No.010627
Book TitleGranth Pariksha Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherJain Granth Ratnakar Karyalay
Publication Year1917
Total Pages123
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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