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________________ ग्रन्थ-परीक्षा। नहीं सका । इसके सिवाय त्रिवर्णाचारमें इस प्रकरणका प्रारंभ इन शब्दोंके साथ किया गया है:-. __“ अथ परिणयनविधिमाह । तथा च क्षीरकदम्बाचार्येणोक्तम् । ब्राह्म-. णस्य चतस्रो भार्याः क्षत्रियस्य तिस्रो वैश्यस्य द्वे शूद्रस्यैक इत्युक्त्वा तासु च पुत्रा उत्पादयितव्या इत्युक्तम् । इदानीं कस्यां कस्मात्कः पुत्रो भवति इति विवेकमाह ।" अर्थात्-'अब परिणयन विधिको कहते हैं। तैसा (तथा ) क्षीर . कदम्बाचार्यने कहा है। ब्राह्मणके चार वर्णकी, क्षत्रियके तीन वर्णकी, वैश्यके दो वर्णकी और शूद्रके एक अपने ही, वर्णकी स्त्रियाँ होती हैं । यह कहकर (इत्युक्त्वा ) उन स्त्रियोंमें पुत्र उत्पन्न करने चाहिएँ, यह कहा जा चुका ( इत्युक्तम् ) । अब किस स्त्रीमें, किसके संयोगसे, कौन पुत्र उत्पन्न होता है, इसका विचार करते हैं।' __ इन वाक्योंसे पहले, इस त्रिवर्णाचारमें, 'परिणयनविधि' का कोई ऐसा कथन नहीं आया जिसका सम्बन्ध ' तथा' शब्दसे मिलाया जाय । इसी प्रकार ऐसा भी कोई कथन नहीं आया जिसका सम्बंध "इत्युक्त्वा ' और 'इत्युक्तम् ' इन शब्दोंसे मिलाया जाय। ऐसी हालतमें ये सब वाक्य विलकुल असम्बद्ध मालूम होते हैं और इस वातको प्रगट करते हैं कि इनमेंसे कुछ वाक्य कहींसे उठाकर रक्त गये हैं और कुछ वैसे ही जोड़ दिये गये हैं। मिताक्षरा टीकाको देखनेसे इसका सारा भेद खुल जाता है। असलमें मिताक्षरा टीकाकारने चौथे प्रकरणका प्रारंभ करते हुए पर्वकथनका सम्बंध और उत्तर कथनकी सूचनिका रूपसे प्रथम श्लोक (नं० ९०)के आदिमें 'ब्राह्मणस्य चतस्रो भार्या....' इत्यादि उपर्युक्त वाक्य दिये थे । त्रिवणांचारक कतोंने उन्हें ज्योंका त्यों बिना सोचे समझे नकल कर दिया है और दो वाक्य वैसे ही अपनी तरफसे और उनके पहले जोड़ दिये हैं । पहले ७६
SR No.010627
Book TitleGranth Pariksha Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherJain Granth Ratnakar Karyalay
Publication Year1917
Total Pages123
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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