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________________ कुन्दकुन्द-श्रावकाचार । ऊपरके कोष्टकसे दोनों ग्रन्थों में पद्योंकी जिस न्यूनाधिकताका वोध होता है, बहुत संभव है कि वह लेखकोंकी कृपाहीका फल हो -जिस प्रतिपरसे विवेकविलास छपाया गया है और जिस प्रतिपरसे • कुंदकुंदश्रावकाचार उतारा गया है, आश्चर्य नहीं कि उनमें या उनकी पूर्व प्रतियोंमें लेखकोंकी असावधानीसे ये सब पद्य छूट गये हों क्योंकि पद्योंकी इस न्यूनाधिकतामें कोई तात्त्विक या सैद्धान्तिक विशेषता नहीं पाई जाती । वल्कि प्रकरण और प्रसंगको देखते हुए इन पद्योंमें छूट जानेका ही अधिक खयाल पैदा होता है । दोनों ग्रंथोंसे लेखकोंके प्रमादका भी अच्छा परिचय मिलता है । कई स्थानों पर कुछ श्लोक आगे . पीछे पाये जाते हैं-विवेकविलासके तीसरे उल्लासमें जो पद्य नं. १७, १८ और ६२ पर दर्ज हैं वे ही पद्य कुंदकुंदश्रावकाचारमें क्रमशः नं० १८,१७ और ६० पर दर्ज हैं। आठवें उल्लासमें जो पद्य नं. ३१७३१८ पर लिखे हैं वे ही पद्य कुंदकुंदश्रावकाचारमें क्रमशः नं:३११-३१० पर पाये जाते हैं, अर्थात् पहला श्लोक पीछे और पीछे का पहले लिखा गया है । कुंदकुंदश्रावकाचारके तीसरे उल्लासम श्लोक नं. १६ को “ उक्तं च” लिखा है और ऐसा लिखना ठीक भी है; क्योंकि यह पद्य दूसरे ग्रंथका है और इससे पहला पद्य नंबर १५ भी इसी अभिप्रायको लिये हुए है। परन्तु विवेकविलासमें इसे 'उक्तं च ' नहीं लिखा। इसी प्रकार कहीं कहीं पर एक ग्रंथमें एक श्लोकका जो पूर्वार्ध है वही दूसरे ग्रंथमें किसी दूसरे श्लोकका उत्तरार्ध हो गया है । और कहीं कहीं एक श्लोकके पूर्वार्धको दूसरे श्लोकके उत्तरार्धसे मिलाकर एक नवीन ही श्लोकका संगठन किया गया है । नीचेक उदाहरणोंसे इस विषयका और भी स्पष्टीकरण हो जायगाः. (१) विवेकविलासके आठवें उल्लासमें निम्नलिखित दो पद्य दिये हैं:
SR No.010627
Book TitleGranth Pariksha Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherJain Granth Ratnakar Karyalay
Publication Year1917
Total Pages123
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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