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________________ कुन्दकुन्द-श्रावकाचार । | कुंदकुंद श्रा० के दोनों श्लोकोंमें मूषका-- २३३, ३४३९ (१ श्लोक), दिकके द्वारा किसी वस्तुके कटेफटे होनेपर । . (२लोका छदाकृतिसे शुभाशुभ जाननेका कथन है। यह कथन कई श्लोक पहलेसे चल रहा है। विवेकविलासका श्लोक नं. ३९ ताम्बूल प्रकरणका है जो पहलेसे चल रहा है । x ६०(१ श्लोक) भोजन प्रकरणमें एक निमित्तसे भायु और धनका नाश मालूम करनेके सम्बन्धमा । - (१०, ११, ५७, पद्य नं. १०-११ में सोते समय ता-. १४२, १४३०म्बूलादि कई वस्तुओंके त्यागका कारण१४४, १४६ सहित उपदेश है; ५७ वा पद्य पुरुषपरी-- |१८८ से १९२/ तक ( १२ लोक )क्षामें हस्तरेखा सम्बंधी है। दोनों प्रन्योंमें इस परीक्षाके ७५ पद्य और हैं; १४२, १४३, १४४ में पद्मिनी आदि त्रियोंकी . पहचान लिखी है । इनसे पूर्वके पद्यमें उनके नाम दिये हैं।१६ में पतिप्रीति ही स्त्रियोंको कुमार्गसे रोकनेवाली है, इत्यादिकथन है । शेष ५ पद्योंमें ऋतुकालकें समय कौनसी रात्रिको गर्भ रहनेसे कैसी : संतानः उत्पन्न होती है, यह कथन पाँचवीं रात्रिसे १६. वी रात्रिके सम्बंधमें है। इससे पहले चार रात्रियोंका कथन दोनों ग्रंथोंमें है ।। २९
SR No.010627
Book TitleGranth Pariksha Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherJain Granth Ratnakar Karyalay
Publication Year1917
Total Pages123
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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