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________________ ध्वजा भी भावपूर्वक किये हुए पूजनादिकके फलको उलटपुलट करदेने में समर्थ है। सच पूछिये तो मनुष्यके कर्मोंका फल उसके भावोंकी जाति और उनकी तरतमतापर निर्भर है। एक गरीब आदमी अपने फटे पुराने कपड़ोंको पहिने हुए ऐसे मंदिरमें जिसके शिखर पर ध्वजा भी नहीं है, बड़े प्रेमके साथ परमात्माका पूजन और भजन कर रहा है और सिरसे पैरतक भक्तिरसमें डूब रहा है, वह उस मनुष्यसे अधिक पुण्य उपार्जन करता है जो अच्छे सुन्दर नवीन वस्त्रोंको पहिने हुए ध्वजावले मन्दिरमें बिना भक्ति भावके, सिर्फ अपने कुलकी रीति समझता हुआ, पूजनादिक करता हो । यदि ऐसा नहीं माना जाय अर्थात् यह कहा जाय कि फटे पुराने वस्त्रोंके पहिनने या मन्दिरपर ध्वजा न होनेके कारण उस गरीब आदमीके उन भक्ति भावोंका कुछ भी फल नहीं है। तो जैनियोंको अपनी कर्म फिलासोफीको उठाकर रख देना होगा । परन्तु ऐसा नहीं है । इसलिये इन दोनों पद्योंका कथन युक्ति और आगमसे विरुद्ध है । इनमेंसे पहला पद्य श्वेताम्बरोंके ' विवेकवि - लास' का पय है, जैसा कि ऊपर जाहिर किया गया है । ( २ ) इस ग्रंथके पूजनाध्यायमें पुष्पमालाओंसे पूजनका विधान करते हुए, एक स्थानपर लिखा है कि चम्पक और कमलके फूलका ' उसकी कली आदिको तोड़नेके द्वारा, भेद करनेसे मुनिहत्या के समान पाप, लगता है । यथा: - उमास्वामि- श्रावकाचार । " नैव पुष्पं द्विधाकुर्यान्न छिंद्यात्कलिकामपि । चम्पकात्पलभेदेन यतिहत्यासमं फलम् ॥ १२७ ॥ " यह कथन बिलकुल जैनसिद्धान्त और जैनागमके विरुद्ध है । कहाँ तो एकेंद्रियफूलकी पँखड़ी आदिका तोड़ना और कहाँ मुनिकी हत्या ! दोनोंका पाप कदापि समान नहीं हो सकता । जैनशास्त्रोंमें एकेंद्रिय जीवोंके घातसे लेकर पंचेंद्रिय जीवोंके घातपर्यंत और फिर पंचेंद्रियंजी - .. २३
SR No.010627
Book TitleGranth Pariksha Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherJain Granth Ratnakar Karyalay
Publication Year1917
Total Pages123
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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