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________________ ग्रन्थ-परक्षिा। इन सब बातोंके सिवा इस ग्रंथमें, अनेक स्थानोंपर, ऐसा कथन भी. पाया जाता है जो युक्ति और आगमसे बिलकुल विरुद्ध जान पड़ता. है और इस लिये उससे और भी ज्यादह इस बातका समर्थन होता है कि यह ग्रंथ भगवान उमास्वामिका बनाया हुआ नहीं है। ऐसे कथनके कुछ नमूने नीचे दिये जाते हैं:- . . . (१) ग्रंथकार महाशय, एक स्थानपर, लिखते हैं कि जिस मंदिरपर ध्वजा नहीं है, उस मंदिरमें किये हुए पूजन, होम और जपादिक सब ही विलुप्त हो जाते हैं अर्थात् उनका कुछ भी फल नहीं होता । यथाः-- • प्रासादे ध्वजनिमुक्त पूजाहोमजपादिक। सर्वं विलुप्यते यस्मात्तस्मात्कार्यों ध्वजोच्छ्यः॥१०७॥ इसी प्रकार दूसरे स्थानपर लिखते हैं कि जो मनुष्य फटे पुराने,. खंडित या मैले वस्रोंको पहिनकर दान, पूजन, तप, होम या स्वाध्याय करता है तो उसका ऐसा करना निष्फल होता है । यथाः "खंडिते गलिते छिन्ने मलिने चैव वाससि। 'दानं पूजा तपो होमः स्वाध्यायो विफलं भवेत् ॥ १३६ ।। मालूम नहीं होता कि मंदिरके ऊपरकी ध्वजाका इस पूंजनादिकके फलके साथ कौनसा सम्बंध हैं और जैनमतके किस गूढ़ सिद्धान्तपर ग्रंथकारका यह कथन अवलम्बित है। इसी प्रकार यह भी मालूम नहीं होता कि फटे पुराने तथा खंडित वस्त्रोंका दान, पूजन, तप और स्वाध्यायादिके फलसे कौनसा विरोध है जिसके कारण इन कार्योंका करना ही निरर्थक हो जाता है । भगवदमास्वामिने तत्त्वार्थसूत्रमें और श्रीअलंकदेवादिक टीकाकारोंने 'राजवार्तिक' आदि ग्रंथोंमें शुभाशुभं कर्मोंके आस्रव और बन्धके कारणोंका विस्तारके साथ वर्णन किया है। परन्तु ऐसा कथन . कहीं नहीं पाया जाता, जिससे यह मालूम होता हो-कि.मंदिरकी एक २२
SR No.010627
Book TitleGranth Pariksha Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherJain Granth Ratnakar Karyalay
Publication Year1917
Total Pages123
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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