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________________ ग्रन्थ-परीक्षा। परन्तु श्राद्धमें ब्राह्मणोंको भोजन खिलाया जाता है या 'सूखा अन्नादिक दिया जाता है। और जिसप्रकार ‘लैटर बक्स' में डाली हुई चिट्ठी दूरदेशान्तरोंमें पहुँच जाती है, उसी प्रकार ब्राह्मणोंके पेटमेंसे वह भोजन देव-पितरोंके पास पहुँचकर उनकी तृप्ति कर देता है । इसके सिवाय कुछ क्रियाकांडका भी भेद है । त्रिवर्णाचारके कर्ताने जंब देव-पितरोंको पानी देकर उनका विस्तारके साथ तर्पण किया है, तब वह श्राद्धको कैसे छोड़ सकता था?-पितरोंकी अधूरी तृप्ति उसे कब इष्ट हो सकती थी ?-इसलिए उसने श्राद्धको भी अपनाया है। और हिन्दुओंका श्राद्धविषयक प्रायः सभी क्रियाकांड त्रिवर्णाचारमें दिया है। जैसा कि-श्राद्धके नित्य, नौमित्तिक, दैविक, एकतंत्र, पार्वण, अन्वष्टका, वृद्धि, क्षयाह, अपर-पक्ष, कन्यागत, गजच्छाया और महालयादि भेदोंका कथन करना; श्राद्धके अवसर पर ब्राह्मणोंका पूजन करना; नियुक्त ब्राह्मणोंसे 'स्वागतं,' 'सुखागतं' इत्यादि निर्दिष्ट प्रश्नोत्तरोका किया जाना; तिल, कुश और जल हाथमे लेकर मासादिक तथा गोत्रादिकके उच्चारणपूर्वक 'अद्य मासोत्तमे मासे...' इत्यादि संकल्प बोलना; अन्वष्टकादि खास खास श्राद्धोंके सिवाय अन्य श्राद्धोंमें. पितादिकका सपत्नीक श्राद्ध करना; अन्वष्टकादि श्राद्धोंमें माताका श्राद्धं अलग करना; नित्य श्राद्धोंमें आवाहनादि नहीं करना नित्य श्राद्धको छोड़कर अन्य श्राद्धोंमें : विश्वेदेवौं ' की भी श्राद्ध करना; विश्वेदेवोंके ब्राह्मणको पितरोंके ब्राह्मणोंसे अलग बिठलाना; देवपात्रों और पितृपात्रोंको अलग अलग रखना; रक्षाका विधान करना; और तिल बखेरना; नियुक्त ब्राह्मणोंकी इजाजतसे विश्वेदेवों तथा पिता, पितामहादिक (तीन पीढी तक ) पितरोंका अलग अलग आवाहन करना; विश्वेदेवों तथा पितरोंको अलग अलग आसन देकर बिठलाना और उनका अलग अलग पूजन करना; गंगा, सिंधु, सरस्वतीको अर्घ देना; ब्राह्मणों के हाथ धुलाना और ११०
SR No.010627
Book TitleGranth Pariksha Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherJain Granth Ratnakar Karyalay
Publication Year1917
Total Pages123
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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