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________________ को मुक्ति मिलनी है, तो तथागत के सन्देश का व्यापक प्रचार होना ही चाहिय । इतिहास की दष्टि से भी पालि-साहित्य का प्रभूत महत्व है । जो मांस्कृतिक निधि हमारी इम साहित्य में निहित है, उसका अभी महत्वाङ्कन ही नहीं किया गया । भारतीय इतिहास के काल-क्रम के निश्चय करने में भी सब से अधिक सहायता पालि माहित्य से ही मिली है। त्रिपिटक और अनुपिटक साहित्य में प्राचीन भारतीय इतिहास की जो अमूल्य सामग्री भरी पड़ी है, उसका अभी तक पूरा उपयोग नहीं किया गया है। उसके सम्यक् अध्ययन से हम बौद्धकालीन इतिहास और भौगोलिक तथ्यों का बहुत अधिक ज्ञान प्राप्त कर सकते हैं। धर्म और दर्शन की दृष्टि से भी पालि का अधिक महत्त्व है । हमने अभी तक प्रायः संस्कृत ग्रन्थों से ही बौद्ध धर्म और दर्शन का परिचय प्राप्त किया है, जो कुछ हालनों में एकांगदर्शी और अधिकांशतः उसके मौलिक स्वरूप से बहुत दूर है। वैदिक परम्परा के उत्तरकालीन आचार्यों ने इसी को लक्ष्य कर प्रायः बौद्धदर्शन की ममालोचना की है। इस प्रकार बद्ध-धर्म के मौलिक स्वरूप से हम प्रायः अनभिज्ञ ही रहे हैं। यही हमारी उस विचार-प्रणाली के प्रति, जो वास्तव में अपनी प्रभावशीलता के लिये विश्व में अद्वितीय है, उदासीनता का कारण है । पालि-साहित्य के प्रकाश में हम देख सकेंगे कि भगवान् गोतम बुद्ध का वास्तविक व्यक्तित्व क्या था और उन्होंने जन-समाज को क्या सिखाया था। पालि-साहित्य का सब से बड़ा महत्व वास्तव में उसकी प्रेरणादायिका शक्ति ही है। यह प्रेरणा अनेक रूपों में आ सकती है। साधना के उत्साह के रूप में भी, ऐतिहासिक गवेषणा के रूप में भी और रचनात्मक साहित्य की सृष्टि के रूप में भी। साधना के अक्षर तो मौन हैं । ऐतिहासिक गवेषणा के विषय में हम काफी कह ही चुके हैं। यहाँ अन्तिम प्रेरणा के विषय में यही कहना है कि पालि-साहित्य में इतनी सामग्री भरी पड़ी है कि वह अभी हिन्दी-साहित्य में अनेक विधायक लेखकों और विचारकों को प्रेरणा और आधार दे सकती है। अभी हमने 'बुद्धचरित' 'सिद्धार्थ', 'यशोधरा' और 'प्रसाद' के कतिपय नाटकों के अतिरिक्त हिन्दी में विशाल पालि-साहित्य से प्रेरणा ही क्या ग्रहण की है ? निश्चय ही प्रत्येक दिशा में उपयोग के लिये यहाँ एक कभी समाप्त न होने वाली सामग्री भरी पड़ी है। यदि पालि की समुचित आराधना की जाय तो निश्चय ही वह बहफलसाधिका हो सकती है।
SR No.010624
Book TitlePali Sahitya ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBharatsinh Upadhyaya
PublisherHindi Sahitya Sammelan Prayag
Publication Year2008
Total Pages760
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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