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________________ . ( ७२ ) इस युग की साहित्य-रचना का एक विशेष लक्षण है। महावंस, दीपवंस, दाठावंस, तेलकटाहगाथा जैसे ग्रन्थों में इस भाषा के स्वरूप के दर्शन होते हैं। __पालि भाषा और साहित्य के अध्ययन का महत्त्व पालि के अध्ययन का अनेक दृष्टियों से बड़ा महत्व है। आज अपनी अनेक प्रादेशिक बोलियों के, यहाँ तक कि कुछ अंशों में राष्ट्र-भाषा हिन्दी के भी, ध्वनिसमह आदि का पूरा ज्ञान हमें नहीं हो पाया। भाषा-विज्ञान सम्बन्धी अनेक बातें अभी अनिश्चित ही पड़ी हुई हैं। इसका कारण यही है कि मध्यकालीन आर्यभाषाओं का, जिनमें पालि प्रथम और मुख्य है, हमारा अभी अध्ययन ही अधूरा पड़ा है १ । अपनी भाषा के वर्तमान स्वरूप को समझने के लिये हमें पालि भाषा का वैज्ञानिक ढंग से अध्ययन करना ही होगा। फिर पालि भाषा ने न केवल हमारी आधुनिक भारतीय भाषाओं को ही प्रभावित किया है। उसका प्रभाव सिंहल, ब्रह्म-देश और स्याम देश की भाषाओं के विकास पर भी पर्याप्त रूप से पझ है। भारतीय विद्यार्थी के लिये अध्ययन का इससे अधिक सुखकर और क्या विषय हो सकता है कि वह इस प्रभाव को खोजे, ढूंढ़े और इन देशों के साथ व्यापक भारतीय संस्कृति के समन्वित सम्बन्धों को और अधिक दृढ़ करे। यही बात पालि-साहित्य के विषय में भी है। उसने विश्व के एक बड़े भू-भाग को शान्ति प्रदान की है, क्योंकि वह प्रधानतः तथागत के सन्देश का वाहक है। उसका अध्ययन कर हम उस विशाल जन-समुदाय से नाता जोड़ते हैं, जिसके साथ हमारे सांस्कृतिक और राजनैतिक सम्बन्ध नवयुग में और भी अधिक दृढ़ होंगे। इस ऊपरी उद्देश्य को छोड़ दें तो भी विशुद्ध साहित्य की दृष्टि से पालि साहित्य के अध्ययन का प्रभूत महत्व है। उसकी उदात्त प्रतिपाद्य वस्तु और गम्भीर, मनोरम शैली किसी भी साहित्य से टक्कर ले सकती हैं। शाक्यसिंह ने जिन गुफाओं में निनाद किया है, वे साधारण नहीं है। यदि मनुष्यता-धर्म से ही अन्त में संसार १. डा० धीरेन्द्र वर्मा १९४० में प्रकाशित अपने 'हिन्दी भाषा का इति हास' में लिखते हैं "हिन्दी संयुक्त स्वरों का इतिहास प्रायः अपभ्रंश तथा प्राकृत भाषाओं तक ही जाता है ...... अपभ्रंश तथा प्राकृत के संयुक्त स्वरों का पूर्ण विवेचन सुलभ न होने के कारण हिन्दी संयुक्त स्वरों का इतिहास भी अभी ठीक नहीं दिया जा सकता।" पृष्ठ १४२
SR No.010624
Book TitlePali Sahitya ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBharatsinh Upadhyaya
PublisherHindi Sahitya Sammelan Prayag
Publication Year2008
Total Pages760
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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