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________________ ( ६४३ ) का काफी गवेषण किया गया। उसके परिणाम स्वरूप जो निश्चित मार्ग दर्शन प्राप्त हुआ उसी का उल्लेख कल्याणी-अभिलेख में है। यह विषय बौद्ध क्रियाकाण्ड मे इतना संबंधित है कि उसका उद्धरण देने से यहां कोई विशेष प्रयोजन सिद्ध नहीं हो सकता । पालि-साहित्य के वरमा में विकास की दृष्टि से केवल इस अभिलेख पर अंकित उन पालि ग्रन्थों के नाम महत्वपूर्ण है जिनकी सहायता उपर्युक्त विवाद के शमनार्थ ली गई थी। इन ग्रन्थों में ये मुख्य हैं-~-पातिमोक्ख खुद्दक-सिक्खा, विमति-विनोदिनी, विनय-पालि, बज्रवुद्धि स्थविर (वजिरबुद्धि थेर।) कृत विनय टीका या सारत्थदीपनी मातिकट्ठकथा या कंखा वितरणी विनय विनिच्छयप्पकरण, विनयसंगहप्पकरण, सीमालंकार पकरण, सीमालंकार संगह आदि । जैसा स्पष्ट है, विनय-पिटक संबंधी साहित्य ही इसमें प्रधान है। ___कल्याणी-अभिलेख इस दिशा में पालि-साहित्य सृजन की अंतिम काल सीमा निश्चित करता है । वह उस प्रभूत पाल-साहित्य की ओर भी संकेत करता है जो लंका की तरह बरमा में भी लिखा गया । पालि-साहित्य यद्यपि संस्कृत की तरह एक पूरा वाङ्मय नहीं है, फिरभी उसकी रचना भारत, लंका और वरमा तीन देशों में हुई है। उसकी अनेकविध बिखरी हुई सामग्री इसका प्रमाण है। पालि में विभिन्न ज्ञान-शाखाओं पर ग्रन्थ नहीं लिख गये। जो कुछ लिखे भी गये उनका भी आधार विशाल संस्कृत वाङ्मय ही था और उनका अपने आप में कोई विशेष महत्व नहीं है।
SR No.010624
Book TitlePali Sahitya ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBharatsinh Upadhyaya
PublisherHindi Sahitya Sammelan Prayag
Publication Year2008
Total Pages760
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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