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________________ ( ५६० ) उसके उत्तराधिकारी राजाओं की एक क्रमबद्ध लम्बी क्रमशः 'दश राजा' 'एकादग 'राजा' 'द्वादश राजा' 'त्रयोदश राजा' इस प्रकार क्रमशः तेतीसवें, चौंतीसवें, पैंतीसवें और छत्तीसवें परिच्छेदों में दी हुई है, जब कि 'दीपवंस' में इस सम्बन्धी संक्षिप्त वर्णन ही उपलब्ध है । सैंतीसवें परिच्छेद की पचासवीं गाथा तक ( जहाँ तक ही मौलिक 'महावंस' की विषय-सीमा है ) राजा महासेन के शासन काल का वर्णन है । इस प्रकार 'दीपवंस' और 'महावंस' दोनों एक ही जगह से प्रारम्भ कर महासेन के शासन काल ( ३२५-३५२ ई० ) · तक आ कर लंका के इतिहास को समाप्त कर देते हैं । 'महावंस' से कम से कम डेढ़ सौ वर्ष पूर्व की रचना होने के कारण 'दीपवंस' जब कि अपने स्रोतों अर्थात् सिंहली अट्ठकथाओं के अधिक समीप है, 'महावंस' ने उसे विस्तृत काव्यात्मक -स्वरूप प्रदान कर उसकी भाषा और शैली में भी अधिक परिष्कार और व्यवस्थापन कर दिया है । दोनों के द्वारा वर्णित विषयों के विवरणों में अद्भुत समानता होने हुए भी कहीं कुछ वंशावलियों के कालानुक्रमों में अन्तर भी है, जिस पर हम अभी आयेंगे । ‘महावंस' को चाहे 'दीपवंस' की अर्थकथा या टीका स्वीकार किया जाय या नहीं, उसकी शैली अपनी एक मौलिक विशेषता रखती है, यद्यपि उसकी विषयवस्तु अन्ततोगत्वा 'दीपवंस' पर ही आधारित हैं । -क्या 'दीपवंस' और 'महावंस' इतिहास हैं ? 'दीपवंस' और 'महावंस' दोनों ही इतने अतिरंजनामय और अलौकिक वर्णनों से भरे हुए ग्रन्थ हैं कि उन्हें शब्दशः तो इतिहास नहीं माना जा सकता । पालित्रिपिटक से हम जानते हैं कि शास्ता मध्य-मंडल को छोड़कर शायद ही कहीं गये । किन्तु ‘महावंस' में तथा उससे पूर्व 'दीपवंस' में भी उनका तीन बार लंका-गमन दिखाया गया है, जो कल्पना - प्रसूत ही हो सकता है। विजय का उसी दिन लंका 'पहुँचना जिस दिन भगवान् का परिनिर्वाण हुआ, यह भी वास्तविक घटनाश्रित नहीं दीखता । नाना चमत्कार-मय वर्णन जो 'दीपवंस' और 'महावंस' में भरे पड़े हैं, उनकी तो कोई इयत्ता ही नहीं । महेन्द्र और उनके साथी भिक्षुओं का आकाश से उड़ कर लंका में पहुँचना, लोह -प्रासाद और महा स्तूप के निर्माण के - समय अनेक प्रकार के चमत्कारों का होना, आदि बातें निश्चित घटनापरक
SR No.010624
Book TitlePali Sahitya ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBharatsinh Upadhyaya
PublisherHindi Sahitya Sammelan Prayag
Publication Year2008
Total Pages760
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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