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________________ ( ५५३ ) और सम्भवतः उसकी व्याख्या-स्वरूप लिखित एक अन्य वंश-ग्रन्थ के साथ करेंगे, जिसका नाम 'महावंस' (महावंश) है। महावंस' 'महावंस' भी 'दीपवंस' के समान ही लङ्का का एक सुव्यवस्थित इतिहासअन्य है। उसकी न केवल विषय-वस्तु किन्तु क्रम भी बिलकुल 'दीपवंस' के समान ही है । सम्भवतः 'दीपवंस' के आधार पर ही वह लिखा गया है । उसके स्रोत बिलकुल 'दीपवंस' के समान ही हैं। 'दीपवंस' और अन्य प्राचीन सिंहली अट्ठकथाओं के अलावा 'सीहलट्ठकथा-महावंस' नामक अट्ठकथा का भी उसने अधिक आश्रय लिया है, यह हमें उसकी टीका जिसका नाम 'महावंस-टीका' (बारहवीं शताब्दी) है, से विदित होता है । 'महावंस' की विषय-वस्तु 'दीपवंस' के समान होते हुए भी उसमे अधिक विस्तृत है । एक बड़ी भारी विशेषता यह है कि दीपवंस' की मी अव्यवस्थित भाषा या नीरस शैली यहाँ बिलकुल नहीं मिलती। 'महावंस' सच्चे अर्थों में एक ऐतिहासिक काव्य है । उसे 'ऐतिहासिक महाकाव्य भी कहा जा सकता है। उसकी भाषा और शैली में वही उदात्तता है, जिसे हम महाकाव्यों की शैली से सम्बन्धित करते है । देवानंपियतिस्स (२४७ ई० पू० से २०७ ई० पू० तक) और दुट्ठगामणि (१०१ ई० पू० से ७७ ई० पू० तक) के विस्तृत , उदान वर्णन निश्चय ही महाकाव्योचित प्रभावशीलता मे ओतप्रोत है । 'महावंस' अपने मौलिक रूप में ३७ वें परिच्छेद की ५०वीं गाथा पर समाप्त हो जाता है। उसके बाद ही 'महावंसो निहितो'' (महावंश समाप्त) इस प्रकार के शब्द लिखित थे। किन्तु बाद में इस ग्रन्थ का कई शताब्दियों तक परिवर्द्धन किया गया। ३७वें परिच्छेद की ५०वीं गाथा मे आगे के परिवद्धित स्वरूप १. डाक्टर गायगर द्वारा सम्पादित, पालि टेक्स्ट सोसायटी द्वारा प्रकाशित, लन्दन १९०८। इस ग्रन्थ के अनेक सिंहलो संस्करण हो चुके हैं। बम्बई विश्वविद्यालय ने इस ग्रन्थ का देवनागरी-संस्करण भी प्रकाशित किया है। हिन्दी में भदन्त आनन्द कौसल्यायन ने इस ग्रन्थ का अनुवाद किया है। हिन्दी साहित्य सम्मेलन, प्रयाग द्वारा १९४२, में प्रकाशित
SR No.010624
Book TitlePali Sahitya ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBharatsinh Upadhyaya
PublisherHindi Sahitya Sammelan Prayag
Publication Year2008
Total Pages760
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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