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________________ ( ५०५ ) निय कथा के विवेचन हैं।' फिर खन्धक-कथा, कम्म कथा, पकिण्णक कथा, कम्मछान-कथा आदि के विवेचन हैं। इस प्रकार उत्तर-विनिच्छय और विनय-विनिच्छय दोनों ही अट्ठकथाएँ विनय-पिटक की विषय-वस्तु का समन्तपासादिका के आधार पर, पद्य में विवेचन करती हैं । इन पर क्रमशः 'उत्तर लीनत्थ दीपनी' और 'विनय सारत्थ दीपनी' नामक टीकाएँ भी बाद में चल कर वाचिस्सर महासामि (वागीश्वर महास्वामी) द्वारा लिखी गई, जिनका उल्लेख हम आगे चल कर टीका-साहित्य के विवेचन में करेंगे। 'अभिधम्मावतार' गद्य-पद्य-मिश्रित रचना है । बुद्धघोष की अभिधम्म-सम्बन्धी अट्ठकथाओं के आधार पर इसका प्रणयन हुआ है। किन्तु बुद्धधोष का अन्धानुकरण लेखक ने नहीं किया है । बुद्धघोष ने रूप, वेदना, संज्ञा, संस्कार और विज्ञान के रूप में धर्मो (पदार्थों) का विवेचन किया है, जब कि बद्धदत्त ने 'अभिधम्मावतार' में चित्त, चेतसिक, रूप और निर्वाण, इस चार प्रकार के वर्गीकरण को लिया है। श्रीमती रायस डेविड्स ने बुद्धदत्त के वर्गीकरण को अधिक उत्तम माना है।४ 'अभिधम्मावतार' के समान 'रूपारूप-विभाग'६ भी अभिधम्म-सम्बन्धी रचना है । इसका भी विषय रूप, अरूप, चित्त, चेतसिक आदि का विवेचन करना है। 'मधुरत्थ विलासिनी' 'बुद्धवंस' की अट्ठकथा है, जिसका साहित्यिक दृष्टि से कुछ अधिक महत्त्व नहीं है। बुद्धघोष की जीवनी अव हम पालि-साहित्य के युग-विधायक आचार्य वुद्धघोष पर आते हैं। १. इन विभिन्न शब्दों के अर्थों के लिए देखिये पीछे विनय-पिटक का विवेचन (चौथे अध्याय में) २. ३. इन दोनों का रोमन लिपि में सम्पादन स्थविर बुद्धदत्त ने किया है, जिसे पालि टैक्सट सोसायटी ने प्रकाशित किया है। इन ग्रन्थों के सिंहली, बरमी और स्यामी संस्करण भी उपलब्ध हैं, जो क्रमशः कोलम्बो, रंगून और बंकाक से प्रकाशित हुए है। ४. बुद्धिस्ट साइकोलोजी, पृष्ठ १७४ ५. ६. इनका भी रोमन लिपि में सम्पादन स्थविर बुद्धदत्त ने किया है, जिसे पालि टैक्सट सोसायटी ने प्रकाशित किया है।
SR No.010624
Book TitlePali Sahitya ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBharatsinh Upadhyaya
PublisherHindi Sahitya Sammelan Prayag
Publication Year2008
Total Pages760
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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