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________________ ( ५०४ ) भी लंका के अनुराधपुर-स्थित महाविहार में जाकर भगवान् (बुद्ध) के शासनसम्बन्धी उच्च शिक्षा प्राप्त की थी। लंका से लौट कर उन्होंने अपने ग्रन्थों की रचना कावेरी नदी के तट पर दक्षिण के कृष्णदास (कण्हदास) या विष्णुदास (वेण्हुदास) नामक वैष्णव द्वारा निर्मित विहार में बैठ कर की,' जो वैष्णवों और बौद्धों के मधुर सम्बन्ध के रूप में पालि-सात्यि में सदा स्मृत रहेगी। वुद्धदत्त द्वारा रचित ग्रन्थ या अट्ठकथाएँ इस प्रकार हैं (१) उत्तरविनिच्छय (२) विनयविनिच्छय (३) अभिधम्मावतार (४) रूपारूपविभाग और मधुरत्थविलासिनी (बुद्धवंम की अट्ठकथा) । 'उत्तरविनिच्छय' (उत्तर विनिश्चय) और 'विनय-विनिच्छय' दोनों बुद्धघोषकृत समन्त-पासादिका (विनयपिटक की अट्ठकथा)के पद्यबद्ध संक्षेप हैं । विनय-विनिच्छय में ३१ और उत्तर विनिच्छय में २३ अध्याय हैं। उत्तर-विनिच्छय के २३ अध्यायों में ९६९ गाथाएँ हैं। विनय-पिटक की विषय-सूची का अनुसरण करते हुए इसमें भी पहले महाविभंग या भिक्खु-विभंग सम्बन्धी नियमों का विवरण है, यथा पाराजिक-कथा, पटिदेसनिय कथा, सेखिय कथा, आदि । इसके बाद भिक्खुनी-विभंग के विषय हैं, यथा पागजिक-कथा, संघादिसेस कथा, निस्सग्गिय कथा, अधिकरण पच्चय कथा, खन्धक पुच्छा, आपत्ति समुट्ठान कथा, आदि । 'उत्तर-विनिच्छय' सिंहलके 'उत्तर विहार' की परम्परा के आधार पर लिखी गयी अट्ठकथा है, यह पहले कहा जा चुका है । विनय-विनिच्छय के ३१ अध्यायों में कुल मिलाकर ३१८३ गाथाएँ है। इसकी भी विषय-वस्तु उत्तर-विनिच्छय से ही मिलती जुलती है । केवल व्याख्या में कहीं कुछ अन्तर है । पहले महाविभंग (भिक्खु विभंग) के अन्तर्गत पाराजिककथा, संघादिमेस कथा, अनियत कथा, निस्सग्गिय पाचित्तिय कथा, पटिदेसनिय कथा तथा मेखिय-कथा का विवरण है । इसी प्रकार भिक्खुनी-विभंग के अन्तर्गत पाराजिक कथा, संघादिसेस कथा, निस्सग्गिय-पाचित्तिय कथा और पटिदेस १. 'अभिधम्मावतार' में उन्होंने स्वयं कहा है “विनय-विनिच्छयो . . . .चोलरठे भूतमंगलगामे वेण्हुदासस्स आरामे वसन्तेन . . . कावेरीपट्टने रम्मे नानारामोपसोभिते कारिते कण्हदासेन दस्सनीये मनोरमे।"
SR No.010624
Book TitlePali Sahitya ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBharatsinh Upadhyaya
PublisherHindi Sahitya Sammelan Prayag
Publication Year2008
Total Pages760
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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